नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (SC-ST) को प्रदोन्नति में आरक्षण पर बड़ा फैसला दिया। देश की सबसे बड़ी अदालत ने पदोन्नति के पैमाने तय करने में दखलंदाजी से इनकार कर दिया। उसने कहा कि कहा कि हम ऐसा नहीं कर सकते, यह राज्यों को करना चाहिए। राज्य सरकारें आरक्षण तय करने से पहले इसके आंकड़े इकट्ठा करें। सरकारें समय-समय पर यह समीक्षा भी करें कि एससी-एसटी को पदोन्नति में आरक्षण में सही प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं। इस समीक्षा के लिए एक अवधि भी तय करनी चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी।
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायधीशों की पीठ की कर रही थी। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, संजीव खन्ना और बीआर गवई की पीठ ने कहा कि संबंधित राज्य सरकार एम नागराज बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फैसले में निर्धारित डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि पीठ के फैसले के बाद आरक्षण के लिए नया पैमाना नहीं बनाया जा सकता।
शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे को लेकर 26 अक्टूबर 2021 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र ने पहले पीठ से कहा था कि लगभग 75 वर्षों के बाद भी एससी और एसटी के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया गया है।
पिछली सुनवाई में पीठ ने ये भी कहा था कि वह अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगी। उसने इसको लागू करने के फैसले को राज्यों पर छोड़ दिया था। उसने सवाल किया था कि इतने दिनों तक सरकारी नौकरियों में ये व्यवस्था क्यों लंबित रखी गई?
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