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जन्मदिन विशेष : “शोले” के ठाकुर प्रसिद्ध अभिनेता संजीव कुमार की कुछ खास यादें

दिल ढूंढता है फिर वहीं फुरसत के रात दिन, खिलौना जानकर तुम तो मेरा दिल तोड जाते हो या फिर ठाकुर न झुक सकता न टूट सकता है… ऎसी कुछ चंद पंक्तियां आज भी लोगों के दिलों सबसे लोकप्रिय है। ये पक्तियां सुनते ही मनोरंजन की दुनिया में हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता संजीव कुमार की यादें ताजा हो जाती है।

संजीव कुमार के अभिनय में एक विशेषता रही कि वे किसी भी तरह की भूमिका के लिए सदा उपयुक्त रहते थे। फिल्म “कोशिश” में एक गूँगे की भूमिका हो या फिर “शोले” में ठाकुर की भूमिका या “सीता और गीता” और “अनामिका” जैसी फिल्मों में लवर्स बॉय की भूमिका हो या “नया दिन नई रात में” नौ अलग-अलग भूमिकाएं- सभी में उनका कोई जवाब नहीं था। फिल्मों में किसी अभिनेता का एक फिल्म में दोहरी या तिहरी भूमिका निभाना बडी बात समझी जाती है लेकिन संजीव कुमार ने फिल्म “नया दिन नई रात” में एक या दो नहीं बल्कि नौ अलग-अलग भूमिकाएँ निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया। फिल्म में संजीव कुमार ने लूले-लँग़डे, अंधे, बूढे, बीमार, कोढ़ी, हिज़डे, डाकू, जवान और प्रोफेसर के किरदार को निभाकर जीवन के नौ रसों को रूपहले पर्दे पर साकार किया। यूँ तो यह फिल्म उनके हर किरदार की अलग खासियत की वजह से जानी जाती है लेकिन इस फिल्म में उनके एक हिज़डे का किरदार आज भी दर्शकों के मस्तिष्क पर छाया हुआ है।

मुंबई में 9 जुलाई 1938 को एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे संजीव कुमार बचपन से ही फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखा करते थे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए जीवन के शुरूआती दौर में उन्होंने स्कूल-कॉलेज में अभिनय किया और बाद में गुजराती रंगमंच से जु़ड गए और फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया।

संजीव कुमार को वर्ष 1960 में फिल्मालय बैनर की फिल्म “हम हिन्दुस्तानी” में एक छोटी-सी भूमिका निभाने का मौका मिला। वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की निर्मित फिल्म “आरती” के लिए उन्होंने स्Rीन टेस्ट दिया जिसमें वे पास नहीं हो सके।

सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में संजीव कुमार को वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म “निशान” में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1960 से 1968 तक संजीव कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फिल्म “हम हिंदुस्तानी” के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वे उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने स्मगलर, पति-पत्नी, हुस्त्र और इश्क, बादल, नौनिहाल और गुनहगार जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।

वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म शिकार में वे पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिए। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी फिर भी संजीव कुमार धर्मेन्द्र जैसे अभिनेता की उपस्थिति में अपने अभिनय की छाप छो़डने में कामयाब रहे। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला।

वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म “संघर्ष” में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन संजीव कुमार ने अपनी छोटी-सी भूमिका के जरिए दर्शकों की वाहवाही लूट ली। इसके बाद आशीर्वाद, राजा और रंक, सत्यकाम और अनोखी रात जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिए संजीव कुमार दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऎसी स्थिति में पहुँच गए जहाँ वे फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे।

वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म खिलौना की जबर्दस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार ने बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म दस्तक में उनके लाजवाब अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1972 में प्रदर्शित फिल्म कोशिश में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला। इस फिल्म में गूंगे की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिए बहुत ब़डी चुनौती थी।

बगैर संवाद बोले सिर्फ आँखों और चेहरे के भाव से दर्शकों को सब कुछ बता देना संजीव कुमार की अभिनय प्रतिभा का ऎसा उदाहरण था जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाए। इस फिल्म में उनके लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। खिलौना, दस्तक और कोशिश जैसी फिल्मों की कामयाबी से संजीव कुमार शोहरत की बुलंदियों पर जा बैठे। ऎसी स्थिति जब किसी अभिनेता के सामने आती है तो जल्द ही वह किसी खास इमेज में भी बँध जाता है, लेकिन संजीव कुमार कभी भी किसी खास इमेज में नहीं बँधे इसलिए अपनी इन फिल्मों की कामयाबी के बाद भी उन्होंने फिल्म परिचय में एक छोटी-सी भूमिका स्वीकार की और उससे भी वे दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे। इस बीच सीता और गीता, अनामिका और मनचली जैसी फिल्मों मे अपने रूमानी अंदाज के जरिए वे जवाँ दिलों की ध़डकन भी बने। फिल्म कोशिश और परिचय की सफलता के बाद गुलजार संजीव कुमार के पसंदीदा निर्देशक बन गए1

बाद में संजीव कुमार ने गुलजार के निर्देशन में आँधी, मौसम, नमकीन और अंगूर जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय के जौहर दिखाए। वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म अंगूर में संजीव कुमार की दोहरी भूमिका शायद ही कोई भूल पाए। अभिनय में एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए संजीव कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस Rम में वर्ष 1975 में प्रदर्शित रमेश सिप्पी की सुपरहिट फिल्म शोले में वे फिल्म अभिनेत्री जया भादुडी (बच्चन) के ससुर की भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके। हालांकि संजीव कुमार ने फिल्म शोले के पहले जया भादु़डी के साथ कोशिश और अनामिका में नायक की भूमिका निभाई थी। वर्ष 1977 में प्रदर्शित फिल्म शतरंज के खिल़ाडी में उन्हें महान निर्देशक सत्यजीत रे के साथ काम करने का मौका मिला। इस फिल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शकों का मन मोहे रखा।

संजीव कुमार दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए है। वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म आंधी के लिए सबसे पहले उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके बाद वर्ष 1976 में भी फिल्म अर्जुन पंडित में बेमिसाल अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजे गए। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिल में खास पहचान बनाने वाले अजीम कलाकार 6 नवंबर 1985 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

vandna

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