काठमांडू। (Indo-Nepal border dispute) चीन के प्रभाव में आकर सीमा विवाद को लेकर भारत को आंखें दिखाने की हिमाकत करने के चंद दिनों बाद ही नेपाल अब गिड़गिड़ाने लगा है। नए नक्‍शे में भारत के इलाकों पर अपना अधिकार जताने के बाद अब वह बातचीत की मेज पर आने की कोशिश कर रहा है। नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने कहा है कि हम सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ बातचीत करने के इच्छुक हैं। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

नेपाल इससे पहले भी कई बार बातचीत के लिए पेशकश कर चुका है। वहीं, भारत ने दो टूक कहा है कि बातचीत के लिए नेपाल को विश्वास और भरोसे का माहौल तैयार करना होगा। नेपाली सरकार ने इससे पहले भी एक डिप्लोमेटिक नोट जारी कर कहा था कि दोनों देशों के विदेश सचिव आमने-सामने या वर्चुअल मीटिंग में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा के मसले पर बात कर सकते हैं। जबकि, पिछले महीने भारत ने कहा था कि कोरोना महामारी से निपटने के बाद विदेश सचिव हर्षवर्धन सिंगला और नेपाली समकक्ष शंकर दास बैरागी इस मामले पर बात करेंगे।

भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा। विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि इस सीमा विवाद का हल बातचीत के माध्यम से निकालने के लिए आगे बढ़ना होगा। इसके बाद नेपाल ने पिथौरागढ़ से सटे बॉर्डर पर बरसों पुराने एक रोड प्रोजेक्‍ट को शुरू करवा दिया। यह रोड रणनीतिक रूप से अहम है और उसी इलाके में है जहां पर नेपाल अपना कब्‍जा बताता रहा है।

यह है विवाद

भारत के लिपुलेख में मानसरोवर लिंक बनाने को लेकर नेपाल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उसका दावा है कि लिपुलेख, कालापानी और लिपिंयाधुरा उसके क्षेत्र में आते हैं। नेपाल ने इसके जवाब में अपना नया नक्शा जारी कर दिया जिसमें ये तीनों क्षेत्र उसके अंतर्गत दिखाए गए। इस नक्शे को जब देश की संसद में पारित कराने के लिए संविधान में संशोधन की बात आई तो सभी पार्टियां एक साथ नजर आईं। इस दौरान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत को लेकर सख्त रवैया अपनाए रखा।

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