लखनऊ। नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ भड़की हिंसा में शामिल कथित उपद्रवियों के फोटो होर्डिंग्स और पोस्टर्स में लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ सरकार को कोई फौरी राहत नहीं दी है। कोर्ट ने यह मामला तीन सदस्यीय बड़ी पीठ को भेज दिया है। योगी सरकार उपद्रवियों के पोस्टर लगाने के गलत बताने वाले हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान योगी सरकार ने अपने ऐक्शन का बचाव किया और दलीत दी कि सरेआम बंदूक लहराने वाले दंगाइयों की निजता का सवाल बेमानी है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को तीन जजों की पीठ को भेजा है और हाईकोर्ट के आदेश को स्टे नहीं किया है। शीर्ष अदालत ने पोस्टर लगाना यही या गलत इस पर कोई फैसला नहीं दिया है। अदालत के गुरुवार के इस आदेश के चलते उत्तर प्रदेश सरकार को अब 16 मार्च 2020 तक सभी पोस्टर लखनऊ के सड़कों से हटाने होंगे।
न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि इस मामले को मुख्य न्यायाधीश देखेंगे। इस मामले में ऐसे सभी व्यक्ति जिनके नाम होर्डिंग्स में हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के सामने मामले में पक्ष रखने की अनुमति दी गई है।
इससे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 95 लोग शुरुआती तौर पर पहचाने गए। उनकी तस्वीरें होर्डिंग पर लगाई गईं। इनमें से 57 पर आरोपों के सबूत भी हैं। आरोपितों ने अब निजता के अधिकार का हवाला देते हुए हाईकोर्ट में होर्डिंग को चुनौती दी लेकिन पुत्तास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1994 के फैसले में भी निजता के अधिकार के कई पहलू बताए हैं। इस पर न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि अगर दंगा-फसाद या लोक संपत्ति नष्ट करने में किसी खास संगठन के लोग सामने दिखते हैं तो कार्रवाई अलग मुद्दा है लेकिन किसी आम आदमी की तस्वीर लगाने के पीछे क्या तर्क है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने पहले चेतावनी और सूचना देने के बाद ये होर्डिंग लगाए। प्रेस-मीडिया में भी बताया। इस पर न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस ने कहा कि जनता और सरकार में यही फर्क है। जनता कई बार कानून तोड़ते हुए भी कुछ कर बैठती है लेकिन सरकार पर कानून के मुताबिक ही चलने और काम करने की पाबंदी है। इस दौरान न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि फिलहाल तो कोई कानून आपको सपोर्ट नहीं कर रहा। अगर कोई कानून है तो बताइए।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने भी व्यवस्था दी है कि अगर कोई मुद्दा या कार्रवाई जनता से सीधा जुड़े या पब्लिक रिकॉर्ड में आ जाए तो निजता का कोई मतलब नहीं रहता। होर्डिंग हटा लेना बड़ी बात नहीं है लेकिन बिषय बड़ा है। कोई भी व्यक्ति निजी जीवन में कुछ भी कर सकता है लेकिन सार्वजनिक रूप से इसकी मंजूरी नहीं दी जा सकती है। तुषार मेहता ने कहा कि हमने आरोपितो को नोटिस जारी करने के बाद कोई जवाब ना मिलने पर अंतिम फैसला किया। इस प्रकरण में 57 लोग आरोपित हैं जिनसे वसूली की जानी चाहिए। हमने भुगतान के लिए 30 दिनों की मोहलत दी थी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के ब्रिटिश रॉयल सुप्रीम कोर्ट के ऑपरेशन एक्सपोज को कानूनन सही ठहराने के आदेश का हवाला देने के बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने पूर्व आईपीएस अधिकारी दारापुरी की ओर से बहस शुरू की। सिंघवी ने कहा कि यूपी सरकार ने कुछ बुनियादी नियमों की अनदेखी की। अगर हम यूं ही बिना सोचे-समझे एक्सपोज करते रहे तो नाबालिग दुष्कर्मी के मामले में भी यही होगा? इसमें बुनियादी दिक्कत है। यूपी सरकार ने लोकसम्पत्ति नष्ट करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले की अनदेखी की। यहां पर सरकार ने तो जनता के बीच ही भीड़ में मौजूद लोगों को दोषी बना डाला। शीर्ष अदालत की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि उन्हें आरोपितों के पोस्टर लगाने का अधिकार किस कानून के तहत मिला है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर सवाल उठाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि किस कानून के तहत सरकार ने दंगे के आरोपितों को होर्डिंग्ल और बैनर लगाए। न्यायमूर्ति अनुरुद्ध बोस ने कहा कि सरकार कानून के बाहर जाकर काम नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को तीन जजों की बेंच को भेजा है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को स्टे नहीं किया है। कोर्ट ने पोस्टर लगाना यही या गलत इस पर कोई फैसला नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक शायद ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके तहत उपद्रव के कथित आरोपितों की तस्वीरें होर्डिंग में लगाई जाएं। कोर्ट ने कहा कि लखनऊ के विभिन्न चौराहों और मुख्य सड़क के किनारे होर्डिंग्स और पोस्टर्स में 57 से अधिक आरोपितों के फोटो लगे हैं। इस मामले का इलाहाबाद होई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को सभी होर्डिंग्स तथा पोस्टर्स को हटाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने होर्डिंग्स पर कथित आगजनी करने वालों का ब्योरा देने के लिए कदम उठाया है। कोर्ट राज्य सरकार की चिंता को समझ सकता है लेकिन अपने फैसले को वापस लेने का कोई कानून नहीं है।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दलील दी कि प्रदेश में काफी प्रदर्शनकारी खुले में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं। मीडिया ने उनका वीडियो बनाया। सबने वीडियो देखा। ऐसे में यह दावा नहीं कर सकते कि पोस्टर लगने से उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। निजता के कई आयाम होते हैं। अगर आप दंगों में खुलेआम बंदूक लहरा रहे हैं और चला रहे हैं तो आप निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकते।
लखनऊ में प्रदर्शनकारियों के फोटो सार्वजनिक तौर पर लगाने की घटना का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था और फौरन इनको हटाने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने अपने आदेश में कहा था कि लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर 16 मार्च 2020 तक होर्डिंग्स हटवाएं। इसके साथ ही होर्डिंग हटाने की जानकारी रजिस्ट्रार को दें। अदालत ने इन दोनों अधिकारियों को हलफनामा भी दाखिल करने को कहा था। हाई कोर्ट ने कहा था कि बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर में फोटो लगाना अवैध है। यह निजता के अधिकार का हनन है। बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए किसी की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना गलत है।
लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने कहा था कि प्रशासन ने इनकी फोटो उन इलाकों में लगवाई, जहां इन्होंने तोडफ़ोड़ की थी। आगे अगर पुलिस साक्ष्य उपलब्ध कराएगी तो बाकियों से भी वसूली होगी। सभी को नोटिस जारी होने की तिथि से 30 दिन का समय दिया गया है। यहां पर वसूली राशि जमा करने में असफल रहने की स्थिति में नामजद आरोपितों की संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी।
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