नई दिल्‍ली। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के देशभर में हो रहे विरोध के बीच नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register) के अपडेशन को मंजूरी दे दी है।मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इस प्रक्रिया के लिए 8,700 करोड़ रुपये के बजट आवंटन को भी मंजूरी दी गई। एनपीआर के तहत देश भर के नागरिकों का डेटाबेस तैयार किया जाएगा। हालांकि एनपीआर डेटाबेस नागरिकता का प्रमाण नहीं होगा। 

एनपीआर अपडेट करने की प्रक्रिया अगले साल पहली अप्रैल में शुरू होगी। असम को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह अभियान सितंबर 2020 तक चलेगा। इस बाबत सरकारी अधिसूचना अगस्त में जारी की गई थी।

भारत के सभी सामान्य नागरिकों के लिए एनपीआर में नाम दर्ज कराना अनिवार्य होगा। इसका मकसद देश के सभी सामान्य नागरिकों का वृहद डाटाबेस तैयार करना है। इसमें जनसंख्या संबंधी आंकड़ों के साथ साथ बायोमीट्रिक विवरण भी दर्ज होगा। नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण एवं राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत एनपीआर तैयार किया जाएगा। इसे राष्ट्रीय, राज्य, जिला, उप-जिला और स्थानीय (ग्रामसभा/कस्बा) स्तर पर तैयार किया जाना है। 

रजिस्ट्रार जनरल एवं जनगणना आयुक्त की आधिकारिक वेबसाइट में जारी सूचना के अनुसार, अब जनगणना-2021 के लिए घरों की सूची तैयार करने के चरण के साथ ही एनपीआर को अपडेट करने का फैसला किया गया है। बता दें कि जनगणना-2011 के लिए घरों की सूची बनाने के लिए 2010 में एनपीआर का डाटा जुटाया गया था। यही नहीं साल 2015 में घर-घर जाकर इसको अपडेट भी किया गया था। एनपीआर में सामान्य नागरिकों की गणना की जाती है जो किसी जगह पिछले छह महीने या उससे अधिक समय से रह रहे हों।

क्या है एनपीआर?

एनपीआर का पूरा नाम नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर है। देश के सामान्य निवासियों की व्यापक पहचान का डेटाबेस बनाना इसका मुख्य लक्ष्य है। इस डेटा में जनसांख्यिंकी के साथ बायोमेट्रिक जानकारी भी होगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार में 2010 में एनपीआर बनाने की पहल शुरू हुई थी। तब 2011 में जनगणना के पहले इस पर काम शुरू हुआ था।  

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