ख़बर फैल चुकी है कि गाँव में एक अर्थी आई है।लेकिन अफ़सोस, चिंता या घबराहट के नामोनिशान नहीं हैं।
क्योंकि शवों को श्मशान ले जाने वाली अर्थी पर एक ज़िंदा आदमी हाथ जोड़े बैठा है।36 साल के राजन यादव उर्फ़ ‘अर्थी बाबा’ ने आज इस गाँव को प्रचार के लिए चुना है।
साथ में चार सहायक हमेशा रहते हैं। अर्थी को कंधा देने के लिए। बॉलीवुड कॉमेडियन राजपाल यादव की ‘सर्व संभव पार्टी’ के उम्मीदवार राजन एमबीए कर चुके हैं।
उनके मुताबिक़ विदेश से नौकरी का न्योता भी आया था लेकिन ‘मना कर दिया। ‘अर्थी बाबा’ की पसंदीदा सब्ज़ी कद्दू है और फ़ेवरिट कार ऑडी।
इनका चुनावी कार्यालय गोरखपुर राजघाट पर स्थित श्मशान घाट है. लेकिन चुनाव प्रचार वे अर्थी पर विराजमान हो करते हैं क्योंकि ‘ये देश में फैले भ्रष्टाचार का प्रतीक है।’
यह पूछने पर, “अगर लोग आपको सिरफिरा या पब्लिसिटी हंग्री कहेंगे तो क्या गलत होगा?”
राजन का जवाब था, “लोग कह सकते हैं। मैं चुनाव लड़ने के लिए करोड़ों ख़र्च करना पाप समझता हूँ। लोगों को लगता है कि मैं दिखावा कर रहा हूँ।लेकिन मेरा मक़सद देश में फैले भ्रष्टाचार को ख़त्म करना है, बस।”
‘अर्थी बाबा’ जब कैम्पेन पर निकलते हैं तो मुस्कुराते हुए लोग उन्हें कम और उनकी अर्थी को ज़्यादा गौर से देखते हैं।
उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव जारी हैं और चौरी-चौरा सीट पर मतदान होने में अभी कुछ दिन बाकी हैं।
जहाँ एक तरफ इलाके में कुछ उम्म्मीवार घोड़ों और बैलगाड़ियों पर सवार हो नामांकन करने गए थे वहीँ राजन की ‘अर्थी’ भी कदमताल कर रही थी।
सवाल पर कि खर्च कैसे चलाते हैं राजन का जवाब था, “श्मशान घाट के बाहर मेरा ऑफ़िस पूरे साल चलता है. हर व्यक्ति से सिर्फ़ एक रुपए की उम्मीद होती है और वो दे भी देते हैं।इसी से खर्च चलता है।”
लेकिन जहाँ प्रचार चल रहा है वहां के लोग इन्हें देख मुस्कुराते या खुश तो होते हैं लेकिन थोड़ी सावधानी के साथ. रूद्रापुर गाँव के राणा कुलदीप ने कहा, “शायद अर्थी बाबा के 50 वोट भी न आएं. लेकिन जो काम वे कर रहे हैं वो देखने लायक है।”
‘अर्थी बाबा’ जब प्रचार के लिए इस गाँव में पहुंचे थे तब कई वृद्ध महिलाएं भी इनसे मिलने घरों से बाहर आ गईं थीं।राजन को लगता है कि महिलाओं के सशक्तिकरण से चीज़ें बदल सकेंगी।
उन्होंने कहा, “मैं हर वृद्ध महिला का पैर अपने प्रचार के दौरान धोता हूँ।इसलिए नहीं कि सिर्फ़ वोट मिले बल्कि इसलिए भी कि उन्हें ये एहसास हो जाए कि सभी बड़े नेता ऐसा नहीं करेंगे और इसे करने की ज़रूरत है।”
घड़ी में साढ़े सात बज रहे हैं और अंधेरा घना है। राजन यादव और उन्हें ‘कंधा’ देने वाले अब सामान समेट दूसरे गाँव पहुँचने की तैयारी में हैं।
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