भारत को चीन का विकल्प बताने वालों को कट्टरपंथी कहते हुए ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है कि जो कट्टरपंथी कह रहे हैं कि भारत चीन की जगह लेने को सही रास्ते पर है, वे राष्ट्रवादी डींग हांक रहे है।
बीजिंग/नई दिल्ली। कोरोना वायरस को लेकर दुनियाभर को गुमराह करने और इसे लेकर सवाल उठाने वाले देशों को धौंस देने की चीन को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अमेरिका, जर्मनी, जापान समेत कई देशों ने अपनी कंपनियों को वहां से कारोबार समेटने का हुक्म सुना दिया है। इनमें से कई कंपनियों ने चीन से निकलकर भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने के ऐलान भी कर दिया है। ऐसा होने पर चीन से दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब होने का तमगा छिन सकता है। इससे चीन के हुक्मरान बौखला गए हैं। अपनी भड़ास वे चीन सरकार नियंत्रित मीडिया के माध्यम से निकाल रहे हैं।
चीन सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में छपा एक लेख इसकी तस्दीक करता है। इस लेख में कहा गया है कि लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था प्रभावित होने के बावजूद भारत बड़ा सपना देख रहा है लेकिन चीन का विकल्प नहीं बन पाएगा। बौखलाहट इस कदर है कि इस लेख में चीन से भारत की तुलना करने को लेकर पश्चिमी मीडिया को दलाल तक कहा गया है।
गौरतलब है कि भारतीय अधिकारियों ने कुछ दिन पहले कहा था कि सरकार ने अप्रैल में 1,000 से अधिक अमेरिकी मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों से संपर्क किया और उन्हें चीन से कारोबारी गतिविधियों को हटाकर भारत आने से होने वाले फायदे के बारे में बताया गया है। ये कंपनियां 550 से अधिक उत्पाद बनाती हैं। सरकार का मुख्य ध्यान मेडिकल इक्विपमेंट आपूर्तिकर्ता, फूड प्रोसेसिंग यूनिट, टेक्सटाइल्स, लेदर और ऑटो पार्ट्स निर्माता कंपनियों को आकर्षित करने पर है।
गौरतलब है कि दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में फुटवियर सप्लाई करने वाली जर्मन कंपनी वॉन वेल्क्स ने अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चीन से आगरा शिफ्ट करने की बात कही है तो ओप्पो और ऐपल जैसी मोबाइल कंपनियां भी भारत में शिफ्ट होने की तैयारी कर रही हैं। बताया जा रहा है कि पहले अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध (Trade war) और अब कोरोना वायरस महामारी के दौर में सप्लाई चेन प्रभावित होने की वजह से अमेरिका, जापान और यूरोपीय देशों की करीब एक हजार कंपनियां चीन से निकलना चाहती हैं।
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, “मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश ने चीन से मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शिफ्ट करने की सोच रही कंपनियों को आकर्षित करने के लिए एक इकनॉमिक टास्क फोर्स बनाई है। हालांकि, ऐसे प्रयासों के बावजूद यह यह उम्मीद करना भ्रम है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण चीन की अर्थव्यवस्था पर जो दबाव है उससे भारत दुनिया के लिए नई फैक्ट्री बन जाएगा।”
भारत को चीन का विकल्प बताने वालों को कट्टरपंथी कहते हुए ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है कि जो कट्टरपंथी कह रहे हैं कि भारत चीन की जगह लेने को सही रास्ते पर है, वे राष्ट्रवादी डींग हांक रहे है। ग्लोबल टाइम्स ने इस मुद्दे को सीमा विवाद से भी जोड़ दिया और कहा कि यह गुमान आर्थिक मुद्दों से सैन्य स्तर तक पहुंच गया है। जिससे उन्होंने गलती से मान लिया है कि वे अब चीन का मुकाबला सीमा विवादों से कर सकते हैं। यह सोच खतरनाक है।
ग्लोबल टाइम्स ने अपनी खीझ पश्चिमी मीडिया पर भी निकाली और कहा कि “पश्चिमी मीडिया चीन से भारत की तुलना करके उत्साह के साथ दलाली कर रहा है। इससे कुछ भारतीयों को सही स्थिति को लेकर भ्रम हो गया है। यह सोचना अवास्तविक है कि इस समय भारत चीन की जगह ले सकता है।”
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