सोनिया गांधी की पहल पर ही चीन मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक हुई थी। इस बैठक में शामिल दलों को मोदी सरकार की चीन नीति के खिलाफ एकजुट करना तो दूर, खुद कांग्रेस ही अलग-थलग पड़ गई थी। इसी हताशा के चलते राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की बयानबाजी और ज्यादा आक्रमक होती गई।
-गजेन्द्र त्रिपाठी-
इतिहास मानो एक साल में ही अपने को दोहरा रहा है और वह भी पहले से ज्यादा निर्ममता के साथ। करीब एक साल पहले लोकसभा चुनाव के दौरान राफेल मुद्दे पर कांग्रेस लगभग अकेली पड़ गई थी। उस समय राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के “राफेल राग” में दो-एक सहयोगी दलों को छोड़ किसी ने भी सुर नहीं मिलाया था तो अब भारत-चीन तनाव के बीच नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर कांग्रेस एक बार फिर आइसोलेशन जैसी स्थिति में है। तमाम छोटे-बड़े दल तो दूर, सहयोगी दलों तक ने राहुल गांधी के ताजातरीन “चीन राग” से किनारा कर लिया है। हालत यह है कि कांग्रेस के अंदर ही भारत-चीन तनाव के मुद्दे पर पार्टी के स्टैंड, खासकर राहुल गांधी की बयानबाजी को लेकर भारी असंतोष है। इस बेहद संवेदनशील मामले पर राहुल गांधी जिस तरह बेलाग बयानबाजी कर रहे हैं, उसे लेकर मिलिंद देवड़ा और आरपीएन सिंह जैसी युवा नेता इशारों-इशारों में अपनी असहमति जता चुके हैं।
फिलहाल जो स्थिति है, उसे देखकर लगता है भारत-चीन सीमा (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर जितना तनाव है, उससे ज्यादा तनाव देश के अंदर बनाने की कोशिश की जा रही है। जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा कर रहे हैं कि चीन ने भारत की एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं किया है, देश की सेना चीन की हर हरकत का जवाब देने में सक्षम है और सीमा पर सेनाओं ने अपनी तैयारी पूरी कर रखी है, तो वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी चीन के मसले पर नरेंद्र मोदी सरकार को लगातार आक्रमक तरीके से घेरने की कोशिश कर रहे हैं। वह बार-बार देश की सुरक्षा को लेकर सवाल दाग रहे हैं। सोनिया-राहुल-प्रियंका एंड कंपनी के कुछ नेता अपने आकाओँ से भी आगे जाकर दावा कर रहे हैं कि चीनी सेना एलएसी पार कर 20 से 30 किलोमीटर तक भारत के अंदर घुस आयी है। हालांकि ये नेता इस बारे में कोई प्रमाण अभी तक पेश नहीं कर पाए हैं।
चीन के मुद्दे पर अपनी पार्टी को अकेला पड़ते देख कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी पूरी कोशिश की मगर उन्हें भी किसी विपक्षी या सहयोगी दल का साथ नहीं मिला। सोनिया ने चीन के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा था कि सीमा पर संकट के समय सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकती और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताना चाहिए कि क्या वह इस विषय पर देश को विश्वास में लेंगे? आपको याद होगा कि सोनिया गांधी की पहल पर ही चीन मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक हुई थी। इस बैठक में शामिल दलों को मोदी सरकार की चीन नीति के खिलाफ एकजुट करना तो दूर, खुद कांग्रेस ही अलग-थलग पड़ गई थी। इसी हताशा के चलते राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की बयानबाजी और ज्यादा आक्रमक होती गई।
साफ है कि देश की एकता-अखंडता से जुड़े इस बेहद संवेदनशील मुद्दे पर कांग्रेस को न तो मोदी सरकार के विरोधियों का साथ मिल रहा है और न ही उसके अपने सहयोगी ही साथ देने के लिए तैयार हैं। एनसीपी, शिवसेना, रालोद जैसे उसके खास दोस्तों तक ने इस मामले में उसे नितांत अकेला छोड़ दिया है। हालत यह है कि महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के सबसे बड़े दल एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार इस मुद्दे पर राहुल गांधी को लगभग झिड़क चुके हैं। पहले उन्होंने सर्वदलीय बैठक में राहुल गांधी को (निहत्थे सैनिक संबंधी बयानबाजी पर) अंतरराष्ट्रीय समझौतों की याद दिलाई और उसके कुछ दिन बाद ही जो कहा उससे कांग्रेस को हजारों-हजार झटके तो लगे ही होंगे। रक्षा मंत्री रह चुके शरद पवार ने दो टूक कहा कि चीन मामले पर वह मोदी सरकार के साथ खड़े हैं। गौर करिये पवार जैसे शीर्ष नेता ने क्या कहा। पवार ने कहा, “हम नहीं भूल सकते कि 1962 में क्या हुआ था, चीन ने हमारी 45 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया था। यह जमीन अब भी चीन के पास है। वर्तमान में मुझे नहीं पता कि चीन ने जमीन ली है या नहीं मगर इस पर बात करते वक्त हमें इतिहास याद रखना चाहिए, राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर राजनीति नहीं करनी चाहिए।”
चीन मुद्दे पर कांग्रेस को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से भी बड़ी उम्मीद थी पर यहां भी निराश ही मिली। भाजपा से “सांप-नेवले जैसा बैर” मानती रहीं तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने सर्वदलीय बैठक में ही कह दिया कि टीएमसी संकट की इस घड़ी में देश के साथ खड़ी है। ममता ने कहा था, “हमें साथ काम करना होगा, भारत जीत जाएगा, चीन हार जाएगा।” उन्होंने साफ कहा था कि उनकी पार्टी चीन मुद्दे पर सरकार के साथ है।
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती चीन मुद्दे पर मोदी सरकार के साथ खड़ी नजर आती रही हैं। सोमवार (20 जून) को तो उन्होंने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, “चीन के मुद्दे पर देश की प्रमुख पार्टियों को एक-दूसरे के साथ खींचतान नहीं करनी चाहिए। इस आपसी लड़ाई में सबसे ज्यादा देश की जनता का नुकसान हो रहा है।” बसपा की शीर्ष नेता ने साफ कहा कि इस मुद्दे पर उनकी पार्टी केंद्र सरकार के साथ खड़ी है।
अब बात करते हैं समाजवादी पार्टी यानी सपा की। कांग्रेस सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ चुकी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी चीन मुद्दे पर मोदी सरकार के साथ खड़े नजर आ रहे है। अखिलेश यदव ने ट्वीट कर कहा था, “चीन के हिंसक व्यवहार को देखते हुए भारत सरकार को सामरिक के साथ-साथ आर्थिक जवाब भी देना चाहिए। चीनी कंपनियों को दिए गए ठेके तत्काल प्रभाव से निलंबित होने चाहिए। सरकार के इस प्रयास में समाजवादी पार्टी सरकार के साथ है।” जो लोग अतीत को भूल जाते हैं और इतिहास से सबक नहीं लेते, उन्हें याद दिला दें कि सपा के संरक्षक और रक्षा मंत्री रह चुके मुलायम सिंह ने लोकसभा में चीन को भारत के लिए “सबसे बड़ा खतरा” बताया था।
कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने चीन मुद्दे पर मोदी सरकार को साफतौर पर समर्थन दिया है। इनमें कुछ दलों के मोदी सरकार के साथ गहरे मतभेद रहे हैं पर राष्ट्र की एकता-अखंडता से जुड़े मुद्दे पर केंद्र की भाजपा सरकार का समर्थन करने में एक पल का भी विलंब नहीं किया। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, मेघालय के मुख्यमंत्री के. संगमा और सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने बयान जारी कर केंद्र और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया है।
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