नई दिल्ली। नियुक्तियों और पदोन्नतियों में आरक्षण को लेकर कांग्रेस ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पार्टी ने ऐलान किया है कि वह सरकार के खिलाफ देशव्यापी अभियान चलाएगी। उसने कहा, “पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भाजपा सरकार के असंवैधानिक रुख” के खिलाफ पार्टी 16 फरवरी से पहले देशव्यापी आंदोलन कार्यक्रम शुरू करेगी। इसी मामले को लेकर सोमवार को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ।
कांग्रेस महासचिव व पार्टी की उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने नियुक्तियों और पदोन्नतियों में आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है और आरोप लगाया कि भाजपा आरक्षण को खत्म करने की कोशिश में है। प्रियंका ने ट्वीट किया, “भाजपा का आरक्षण खत्म करने का तरीका समझिए। आरएसएस वाले लगातार आरक्षण के खिलाफ बयान देते हैं। उत्तराखंड की भाजपा सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील डालती है कि आरक्षण के मौलिक अधिकार को खत्म किया जाए। उत्तर प्रदेश सरकार भी तुरंत आरक्षण के नियमों से छेड़छाड़ शुरू कर देती है।” प्रियंका ने आरोप लगाया कि भाजपा ने पहले दलित आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ बने कानून को कमजोर करने की कोशिश की तथा अब संविधान और बाबासाहेब द्वारा दिए बराबरी के अधिकार को कमजोर कर रही है।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने शून्यकाल में यह मुद्दा उठाकर सरकार पर हमला किया। उन्होंने कहा कि सरकार एससी और एसटी समुदाय के अधिकारों को छीन रही है और इसलिए वह राष्ट्रवाद के बजाय मनुवाद के बारे में बात कर रही है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र सरकार के मंत्रियों में से एक ने यह कहकर सदन को गुमराह किया है कि यह स्थिति 2012 सरकार की वजह से आई है। हम निश्चित रूप से मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार के प्रस्ताव को आगे बढ़ाएंगे। गौरतलब है कि सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा था, “इस मुद्दे पर सरकार उच्च स्तरीय विचार-विमर्श कर रही है। मैं इस मामले में स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि सरकार इस केस में कभी पार्टी नहीं थी।”
दरअसल, आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विवाद को हवा तब मिली जब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आरक्षण को लेकर भाजपा और आरएसएस की सोच से जोड़ दिया और कहा कि भाजपा और आरएसएस आरक्षण को खत्म करने के प्रयास में जुटे हैं।
नियुक्तियों और पदोन्नतियों में आरक्षण पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है तथा पदोन्नति में आरक्षण का दावा कोई मौलिक अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, “इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं। ऐसा कोई मौलिक अधिकार नहीं है जिसके तहत कोई व्यक्ति पदोन्नति में आरक्षण का दावा करे।”
उत्तराखंड सरकार के पांच सितम्बर 2012 के फैसले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण उपलब्ध कराए बगैर सार्वजनिक सेवाओं में सभी पदों को भर्ती किए जाने का फैसला लिया था।
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