लॉस ऐंजिलिस। सर्दी के मौसम की आहट के साथ ही यूरोप के कुछ देशों में कोरोना वायरस संक्रमण की वापसी और अमेरिका में कई स्थानों पर ऐसे ही नए मामले बढ़ने ने चिंता बढ़ा दी है। ताजा अध्ययन आसन्न खतरे का संकेत दे रहे हैं। यह वायरस गर्मियों में एयरोसॉल (Aerosol) पार्टिकल्स के जरिए फैल रहा था जबकि सर्दियों में स्नायुतंत्र से बाहर आने वाली छोटी बूंदों (Respiratory droplets) के जरिए इसका फैलना बढ़ सकता है। इन बूंदो से संपर्क में आने पर कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा गहराने की आशंका नैनो लेटर्स (Nano Letters) जर्नल में छपे अध्ययन में जताई गई है।
गौरतलब है कि यह खतरनाक वायरस दुनियाभर में अब तक 11 लाख लोगों की जान ले चुका है।
इस अध्ययन रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अभी सोशल डिस्टेंसिंग के लिए जिन नियमों का पालन किया जा रहा है वे पर्याप्त नहीं हैं। अध्ययन में हिस्सा लेने वाले अनुसंधानकर्ता यानयिंग झू ने कहा कि उनके अध्ययन में ज्यादातर मामलों में यह पाया गया कि ये बूंदें 6 फीट से ज्यादा दूर तक जा सकती हैं। इतनी दूरी अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (CDC) ने सुरक्षित बताई है।
घर और इमारतों के अंदर वॉक-इन फ्रिज और कूलर, या ऐसी जगहें जहां तापमान कम होता है और नमी ज्यादा, वहां ये बूंदें 6 मीटर (19.7 फीट) तक जा सकती हैं और इसके बादजमीन पर गिरती हैं। ऐसे में वायरस कई मिनट से लेकर एक दिन तक संक्रामक हो सकता है। यह एक कारण हो सकता है कि कई जगहों पर मीटर प्रोसेसिंग प्लांट से कई लोगों को इन्फेक्शन की खबरें सामने आई हैं।
दूसरी ओर गर्म और सूखी जगहों पर ये बूंदें जल्दी भाप में बदल जाती हैं। ऐसे में ये पीछे वायरस के हिस्से छोड़ जाती हैं जो दूसरे एयरोसॉल से मिलती हैं। ये एयरोसॉल बोलने, छींकने, खांसने या सांस लेने से छोड़े गए होते हैं। अध्ययन के लीड लेखक लेई झाओ का कहना है कि ये बेहद छोटे हैं, आमतौर पर 10 माइक्रॉन से भी छोटे। ये घंटों तक हवा में रहते हैं जिससे सांस लेने पर यह व्यक्ति को इन्फेक्ट कर सकते हैं।
वैज्ञानिक बताते हैं कि गर्मियों में एयरोसॉल ट्रांसमिशन ज्यादा खतरनाक होता है और सर्दियों में ये बूंदें। इसके साथ ही यह समझने की जरूरत है कि अपनी जगह के तापमान और मौसम के हिसाब से लोगों को उचिव बचाव करना होगा जिससे वायरस को फैलने से रोका जा सके। वैज्ञानिकों का कहना है कि ठंडे और नम कमरों में सोशल/फिजिकल डिस्टेंसिंग ज्यादा हो। उन्हें उम्मीद है कि इससे स्वास्थ्य नीतियां बनाने में सरकारों को मदद मिलेगी। ऐसी गाइडलाइन्स तैयार की जा सकेंगी जिनसे वायरस का फैलना कम किया जा सके। साथ ही मास्क को डिजाइन करने में भी मदद मिलेगी।
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