ग्लीन और पारस के विशेषज्ञ कैन्सर पीड़ितों को दिलायेंगे महंगे इलाज से मुक्ति, बताये बचने के उपाय

बरेली। कैन्सर से डरने की जरूरत नहीं है। अगर स्वयं की थोड़ी चिन्ता की जाये तो इससे जीता जा सकता है। हालांकि बीते कुछ सालों में भारत में कैन्सर से पीड़ित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है। देश में हर साल करीब 7 लाख लोग कैन्सर के मरीज बन रहे हैं। बरेली के लोगों को कैन्सर से बचाने के लिए ग्लीन कैन्सर सेण्टर ने गुडग़ांव के पारस हॉस्पिटल के साथ करार किया है। शनिवार को पारस अस्पताल के कैन्सर रोग विशेषज्ञ डा. पियूष अग्रवाल ने सुपर स्पेशलाइज्ड कैंसर ओपीडी लॉन्च की। यह जानकारी ग्लीन और पारस हॉस्पिटल की संयुक्त प्रेस कान्फ्रेन्स में दी गयी।

पत्रकारों से बात करते हुए पारस हॉस्पिटल के विशेषज्ञ डा. पियूष कुमार अग्रवाल ने कैन्सर के लक्षण, इलाज और बचने की सावधानियों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि भारत में 7 लाख नए मरीज पंजीकृत किए जा रहे हैं। पुरुष अबसे ज्यादा ओरल और लंग कैंसर से प्रभावित दिखते हैं तो वही स्त्रियों में सर्वाइकल और ब्रेस्ट कैंसर होने की आशंका अधिक रहती है।

हेड, नेक एंड ब्रेस्ट ऑन्कोलॉजिकल सर्जरी के हेड कंसल्टेंट डॉ. पीयूष कुमार अग्रवाल के अनुसार आज पर्यावरण प्रदूषण, वाहनों और सिगरेट का धुआं, सब्जी, फलों और अनाजों में अंधाधुंध पेस्टीसाइड का उपयोग कैन्सर को और तेजी से बढ़ा रहा है। साथ ही तम्बाकू चाहे किसी भी रूप में सेवन की जाये, कैन्सर का 90 फीसदी कारण बनती है।

लक्षणों पर चर्चा करते हुए डा. पियूष ने बताया कि यदि आपकी कोई आदत अपने आप बदलने लगे तो समझ लेना चाहिए खतरे की घण्टी बज गयी है। जांच जरूर करायें। इसके अलावा शरीर में कहीं भी किसी भी प्रकार की गांठ हो तो हल्के में न लें। बायोप्सी से पता चल जाता है। उन्होंने लोगों में भ्रम की चर्चा करते हुए कहा कि बायोप्सी से कैन्सर होता नहीं पता चलता है।

कैन्सर से बचने के उपाय पर बोले- तम्बाकू का उपयोग बंद कर देना चाहिए। साथ ही सिगरेट के धुंए से बचें। पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के उपयों में सहयोग करें साथ ही भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान देकर रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करके किसी भी रोग से बचा जा सकता है।

उन्होंने बताया प्रत्येक माह के तीसरे शनिवार को वह और अन्य विशेषज्ञ यहां आकर मरीजों की जांच करेंगे। अधिकांश इलाज यहीं किया जाएगा, अत्यावश्यक होने पर ही दिल्ली सेण्टर रेफर किया जाएगा।

इलाज महंगा होने के सवाल पर बोले- छोटे शहरों और कस्बों में इलाज न मिल पाने से लोगों को बाहर जाना पड़ता है। वहां फीस ज्यादा होती है और मरीज तथा तीमारदार का रहने खाने का खर्च और बढ़ जाता है। अपने शहर में अच्छे इलाज की सुविधा मिलने से लोगों पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ता। वैसे भी उन्होंने बरेली के लिए विशेष रूप फीस 30 से 40 फीसदी कम रखी हैं।

ग्लीन कैंसर सेंटर बरेली के निदेशक दीप तिवारी ने बताया कि पारस हॉस्पिटल के साथ टाइ-अप के बाद बरेली और आसपास के कैन्सर मरीजों को अत्याधुनिक सुविधाएं काफी रियायती दरों पर उपलब्ध हो सकेगी। इसके लिए हम मरीजों, कैंसर सर्वाइवर्स, चिकित्सकों, डाइटीशियंस, मनोचिकित्सकों और मोटिवेटर्स की एक कम्युनिटी तैयार करने में लगे हैं जो लोगों को कैंसर के प्रति जागरूक करेंगे। साथ ही इलाज की सही प्रक्रिया और जगह के बारे में भी बताएंगे।

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