वाराणसी (Gyanvapi Masjid Case) : ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में वादी किरन सिंह के एक वाद में ज्ञानवापी परिसर को लेकर मुकदमा नंबर 712/2022 (भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) में अदालत ने मंगलवार को मुस्लिम पक्ष को कड़ी फटकार लगाई। सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में उपरोक्त मुकदमे में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने अपने अधिवक्ता के बीमार होने की जानकारी दी और जवाब फाइल करने के लिए दोबारा समय मांगा। इस पर अदालत ने फटकार लगाते हुए 6 अक्टूबर तक का समय दे दिया।
अदालत ने अंतिम चेतावनी देते हुए यह भी कहा है कि 6 अक्टूबर से उपरोक्त मामले में प्रतिदिन सुनवाई प्रारंभ की जाएगी। यदि 6 अक्टूबर तक मुस्लिम पक्ष ने अपना जवाब फाइल नहीं किया तो उसका अवसर समाप्त करते हुए न्यायिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा।
ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की ओर से दाखिल प्रार्थना पत्र पर भी मंगलवार की दोपहर अदालत में सुनवाई हुई। सिविल जज सीनियर डिवीजन कुमुदलता त्रिपाठी की अदालत में दाखिल प्रार्थना पत्र में उन्होंने सर्वे के दौरान ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के नियमित दर्शन-पूजन भोग-आरती की मांग की थी। गौरतलब है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पूर्व में भी धरना प्रदर्शन कर वजूखाने में मिले शिवलिंग के नियमित पूजन अर्चन की मांग कर चुके हैं। हालांकि, जिला प्रशासन के अनुरोध पर उन्होंने धरना खत्म कर अदालत का रुख किया था। अब इसी मामले में मंगलवार को सुनवाई अदालत में हुई।
एक दिन पूर्व ही सोमवार को अदालत ने वाद को सुनवाई के योग्य पाते हुए मुस्लिम पक्ष की आपत्तियों को दरकिनार कर मामले की सुनवाई जारी रखने पर फैसला हिंदू पक्ष को दिया है। अब ठीक दूसरे दिन वजूखाने में मिले शिवलिंग के दर्शन-पूजन और अर्चन सहित भोग को लेकर वाद पर सुनवाई होने जा रही है।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बने हैं। वह एक दिन पूर्व बदरीनाथ पीठ के प्रमुख यानि शंकराचार्य़ घोषित किए गए हैं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म प्रतापगढ़ के पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में 15 अगस्त 1969 को हुआ था। इनका मूल नाम उमाशंकर है। उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राइमरी पाठशाला में हुई। परिवार की सहमति पर नौ साल की उम्र में गुजरात जाकर धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी रामचैतन्य के सानिध्य में गुरुकुल में संस्कृत शिक्षा ग्रहण करने लगे। इसके बाद श्रीविद्यामठ के प्रमुख के तौर पर काशी में निवास कर धार्मिक गतिविधियों में जुट गए।
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