मुंबई। भारत में तमाम लोग “मौलिक अधिकारों” की बात तो करते हैं पर अपने “मौलिक कर्तव्यों” को भूल जाते हैं। देश में कोरोना वायरस (कोविड-19) संक्रमण की बिगड़ती स्थिति के बीच बॉंबे हाईकोर्ट ने इस पर गंभीर टिप्पणी की है। हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने कहा है कि जहां सरकारी तंत्र से कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाने की अपेक्षा की जाती है, वहीं नागरिकों से भी उनके “मौलिक कर्तव्य” याद रखने की अपेक्षा की जाती है।
न्यायमूर्ति पीबी वराले ने दो दिन पहले यह टिप्पणी की। वह कोरोना वायरस महामारी के बीच प्रवासी श्रमिकों, दैनिक वेतनभोगियों और स्वास्थ्यकर्मियों के सामने आ रहीं कठिनाइयों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
हाईकोर्ट ने कहा, “केंद्र और राज्य सरकारें दिशानिर्देश और अधिसूचनाएं जारी करके लोगों से भीड़भाड़ और सामूहिक कार्यक्रमों में जाने से बचने तथा सामाजिक दूरी बनाकर रखने को कह रही हैं। …कुछ नागरिक अब भी इन निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं और कुछ नागरिक तो सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने में शामिल हैं।”
न्यायमूर्ति पीबी वराले ने कहा, “ऐसे हालात में, मेरे विचार से यह हमारे लिए एक नागरिक के तौर पर मौलिक कर्तव्यों को याद रखने का समय है। नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के लिए अकसर गंभीर चिंता प्रकट करते हैं लेकिन मौलिक कर्तव्यों को भूल जाते हैं।”
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