तुंग नदी के किनारे बसा य गांव बेंगलुरु से 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस गांव में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है। हालांकि, बाद में यहां के लोग भी कन्नड़ भाषा बोलने लगे थे, 1981-82 तक यहाँ कन्नड़ ही बोली जाती थी।
लेकिन 33 साल पहले पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत भाषी गांव बनाने का आह्वान किया था। और मात्र 10 दिनों तक 2 घंटे के अभ्यास से पूरा गाँव संस्कृत में बात करने लगा था। इसके बाद से सारे लोग आपस में संस्कृत में बातें करने लगे। मत्तूरु गांव में 500 से ज्यादा परिवार रहते हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 3500 के आसपास है। वर्तमान में यहाँ के सभी निवासी संस्कृत समझते है और अधिकांश निवासी संस्कृत में ही बात करते है।
इस गाँव में संस्कृत भाषा के क्रेज़ का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते है की वर्तमान में स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में से लगभग आधे प्रथम भाषा के रूप में संस्कृत पढ़ रहे है।
संस्कृतभाषी इस गांव के युवा बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं। कुछ साफ्टवेयर इंजीनियर हैं तो कुछ बड़े शिक्षा संस्थानों व विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं। इतना ही नहीं, विदेशों से भी कई लोग संस्कृत सीखने के लिए इस गांव में आते हैं। इस गाँव से जुडी एक रोचक बात यह भी है की इस गाँव में आज तक कोई भूमि विवाद नहीं हुआ है।
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