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“भ्रमित वामपंथी” से कैसे बन गए “दयालु पूंजीवादी”, नारायणमूर्ति ने साझा किया वह कड़वा अनुभव

मुंबई। दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने आईआईटी मुंबई के टेक फेस्ट में अपने उस कड़वे अनुभव को साझा किया जिसके चलते वह “भ्रमित वामपंथी” से “दयालु पूंजीवादी” बन गए।

रविवार को टेक फेस्ट में उपस्थित लोगों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये संबोधित करते हुए इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने 1994 की उस  घटना का जिक्र किया जिसने देश को एक सफल और प्रतिबद्ध पूंजीपति दे दिया।

नारायणमूर्ति ने सर्बिया और बुल्गारिया के उस कड़वे अनुभव को साझा किया जिसके बाद उन्होंने इंफोसिस की स्थापना की। उन्होंने बताया कि वह ट्रेन में एक लड़की से बातचीत कर रहे थे जो केवल फ्रेंच समझ सकती थी। हम बुल्गारिया में जीवन के बारे में बात कर रहे थे। इस दौरान लड़की का दोस्त वहां से उठा और पुलिस लेकर आ गया। इसके बाद बुल्गारियाई गार्ड ने मेरा पासपोर्ट, सामान सब जब्त कर लिया और मुझे घसीटकर बाहर ले गए। उन्होंने मुझे एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया। मुझे कुछ खाने-पीने को भी नहीं दिया गया।’ इस दौरान पांच दिन बिना खाए-पिए बीत गए।

उन्होंने बताया कि अगले दिन पुलिस उन्हें प्लेटफार्म पर ले गई और एक मालगाड़ी के गार्ड के डिब्बे में धक्का देकर बैठा दिया। तब पुलिस के जवान ने कहा कि तुम मित्र देश से हो, इसलिए हम तुम्हें जाने दे रहे हैं। इस्तांबुल पहुंचने पर तुम्हारा पासपोर्ट तुम्हें दे देंगे। 

उन्होंने कहा कि तभी मैंने सोच लिया था कि अगर कोई देश दोस्त के साथ ऐसा बर्ताव करता है तो मैं कभी भी एक कम्युनिस्ट देश का हिस्सा नहीं बनना चाहूंगा। नारायण मूर्ति ने कहा कि इस घटना ने मुझे “भ्रमित वामपंथी” की जगह “दयालु पूंजीपति” बना दिया।

उचित आय वाले रोजगार से ही कम की जा सकती है असमानता

नारायणमूर्ति ने कहा कि भारत जेसे देश में असमानता को रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा करके ही दूर किया जा सकता है। रोजगार के ये अवसर पर्याप्त आय देने वाले होने चाहिये तभी असमानता की स्थिति से निपटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत में 65 करोड़ लोग यानी 58 प्रतिशत कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं जो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 14 प्रतिशत का योगदान करता है। उन्होंने कहा कि दूसरे शब्दों में कहा जाय कि भारत की प्रति व्यक्ति आय यदि 2,000 डालर है तो कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की आय मुश्किल से सालाना 500 डालर होगी। क्योंकि ये 58 प्रतिशत लोग देश की जीडीपी में केवल 14 प्रतिशत का योगदान करते हैं।

नारायणमूर्ति ने कहा कि 500 डालर सालाना की यह आय 1.5 डालर प्रतिदिन बैठती है यानी 100 रुपये प्रति दिन के करीब होती है। कृषि क्षेत्र में काम करने वालों को इसी आय में अपना खाना-पीना, स्वास्थ्य, शिक्षा और बच्चों की देखभाल करनी है और किराया भी देना है। इस लिहाज से भारत में गरीबी से लोगों को निकालने के लिये उन्हें कृषि क्षेत्र से हटाकर निम्न-प्रौद्योगिकी सेवाओं और विनिर्माण क्षेत्र में लगाने की जरूरत है जहां उन्हें 1,500 से 2,000 डालर सालाना तक मिल सकते हैं।

gajendra tripathi

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