न्यूयॉर्क। कश्मीर को लेकर दुनियाभर में पाकिस्तान के पक्ष में माहौल बनाने के चक्कर में प्रधानमंत्री इमरान खान खुद चकरघिन्नी बन गए हैं। उनकी जुबान से वह निकला रहा है जिससे अंततः भारत के पक्ष में ही माहौल बन रहा है। आपको याद होगा कि 14 अगस्त 2019 को भारत पर जुबानी हमला करते-करते वह यह कबूल कर बैठे थे कि बालाकोट में भारतीय वायुसेना ने एयर स्ट्राइक की थी। अब एक अखबार को साक्षात्कार देते वक्त उन्होंने फिर कबूल किया कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने दुनियाभर के मुसलमानों को जेहादी बनाया है।
पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की पोल खोलते हुए इमरान ने कबूला कि पाकिस्तानी फौज और उनके मुल्क की जासूसी एजेंसी आईएसआई दोनों ने अल कायदा एवं अन्य आतंकी समूहों को अफगानिस्तान में लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया था। यही नहीं पाकिस्तानी सेना और आईएसआई दोनों के संबंध अल कायदा एवं अन्य आतंकी समूहों से थे।
आतंकवाद के मसले पर इमरान का यह बयान पाकिस्तान के सबसे बड़े कबूलनामों में एक माना जा रहा है। सनद रहे कि ओसाम बिन लादेन के नेतृत्व वाले आतंकी संगठन अल कायदा ने ही न्यूयार्क में 9/11 हमले को अंजाम दिया था।
इमरान ने कहा कि 9/11 हमले के बाद जब हमने इन आतंकी संगठनों से मुंह मोड़ने का काम शुरू किया तो पाकिस्तान में कोई भी हमारे फैसले से सहमत नहीं था। पाकिस्तानी सेना भी खुद को बदलना नहीं चाहती थी। यही वजहें रही कि पाकिस्तान को भी आतंकी हमलों का शिकार होना पड़ा। हालांकि, इमरान ने लादेन के एबटाबाद में छिपकर रहने के बारे में तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख और आईएसआई प्रमुख का बचाव भी किया। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का हवाला देते हुए कहा कि पाकिस्तान की सेना को इस बात की भनक नहीं थी कि लादेन एबटाबाद में रह रहा है।
इमरान खान ने कहा, “जहां तक मुझे जानकारी है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख और आईएसआई प्रमुख को भी यह उम्मीद नहीं थी कि लादेन एबटाबाद में रहा रहा है। ओसामा बिन लादेन के एबटाबाद में छिपकर रहने के बारे में यदि किसी को कोई जानकारी रही भी होगी तो वह बेहद निचले स्तर पर रही होगी।” यह पूछे जाने पर कि पूर्व अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने पाकिस्तान को दुनिया का सबसे खतरनाक मुल्क करार दिया था इस पर आपका क्या कहना है…, इमरान ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि जेम्स मैटिस इस बात को पूरी तरह समझते हैं कि पाकिस्तान कट्टरपंथी क्यों बना… 9/11 हमले के बाद पाकिस्तान ने एक बड़ी भूल की थी। पाकिस्तान ने इस हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में अमेरिका को शामिल करके सबसे बड़ी गलती की। इसी भूल का नतीजा है कि इन लड़ाइयों में 70 हजार पाकिस्तानी मारे गए। कुछ अर्थशास्त्रियों का तो यह भी आकलन है कि अमेरिका को साथ लेने के कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 200 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है।”
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका के नहीं जीत पाने के लिए हमें जिम्मेदार ठहराया गया। हमें इस सच्चाई को माननी होगी कि 1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत संघ से लड़ने के लिए जिन समूहों को ट्रेनिंग दी गई थी अमेरिका ने उन्हीं को ही आतंकवादी मान लिया था जबकि वे विद्रोही संगठन इस जिद पर अड़े थे कि उन्हें विदेशी कब्जे के खिलाफ जिहाद करना है।
इमरान खान ने कहा, “आईएसआई ने दुनियाभर के मुस्लिम देशों से लोगों को बुलाकर ट्रेनिंग दी थी ताकि वे सोवियत यूनियन के खिलाफ जेहाद कर सकें। उस वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने उनकी दिलेरी की तारीफ की थी। अफगानिस्तान की समस्या का समाधान सेना के जरिए नहीं हो सकता है। हमने साल 2008 में ओबामा प्रशासन से भी यही बात कही थी। हमें वास्तविकता समझनी होगी कि अफगान लोग विदेशी ताकतों के खिलाफ हमेशा एकजुट होते रहे हैं। तालिबान भी मानता है कि कूटनीतिक तरीके से ही मसले का हल निकल सकता है।“
अल कायदा और उसके सरगना ओसामा बिन लादेन को लेकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का पिछले तीन महीने में यह दूसरा बड़ा कबूलनामा है। इससे पहले जुलाई में इमरान खान ने कहा था कि पाकिस्तान को ओसामा बिन लादेन की मौजूदगी का पता था। उस वक्त इमरान ने कहा था कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ही सीआईए को ओसामा की मौजूदगी के बारे में बताया था। इसी जानकारी के आधार पर अमेरिका ने लादेन को मारने में सफलता पाई थी।
गौरतलब है कि अमेरिका ते मरीन कमांडो ने ओसामा को 02 मई 2011 की आधी रात को एक बड़े ऑपरेशन में पाकिस्तान के एबटाबाद में घुसकर मार गिराया था।
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