भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग की कार्रवाई को गलत ठहराया है। मामला मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय में एडीजी डॉ. राजेंद्र मिश्रा के पिता कुलामणि मिश्रा के संदर्भ में मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग की कार्रवाई का है। हाईकोर्ट ने कहा है कि लोकतंत्र में किसी की आजादी और निजता को बाधित नहीं किया जा सकता। आयोग की ओर से जो कार्रवाई हुई, उसे शुरू नहीं होना था।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की एकल पीठ ने यह बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया। फैसला दो दिन पहले जारी हुआ था। फैसले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले और फ्रांसीसी दार्शनिक अल्बर्ट कैमोस का संदर्भ भी दिया गया है। एडीजी मिश्रा की माता शशिमणि मिश्रा की ओर से एडवोकेट अमित मिश्रा ने पैरवी की। उन्होंने बताया कि याचिका में जो मुद्दे उठाए गए थे, हाईकोर्ट ने उन्हें मान्य कर दिया। निजता (प्राइवेसी) के अधिकार और मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग के क्षेत्राधिकार के मुद्दे पर भी हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है। एडवोकेट मिश्रा ने कहा कि इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद तय हो गया कि आयोग की सिफारिश पर गठित मेडिकल बोर्ड को कोई हक नहीं कि वह किसी के घर में जाकर जबरिया स्वास्थ्य परीक्षण करे।

एडीजी डॉ. राजेंद्र मिश्रा की मां शशिमणि मिश्रा ने मप्र मानवाधिकार आयोग की कार्रवाई को अपनी निजता, मानवाधिकार और मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर मामले में अनावश्यक हस्तक्षेप किया। इस मामले पर 11 अप्रैल को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने अपने 16 पेज के फैसले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं।

अपने तरह के इस अनूठे मामले में कोर्ट के फैसले पर सभी की निगाहें लगी हुई थीं। दरअसल, भोपाल के बंसल अस्पताल ने कुलामणि मिश्रा का इलाज करने के बाद 14 जनवरी को उन्हें मृत घोषित कर दिया था। मिश्रा के परिवारीजन का दावा है कि उनके पारिवारिक नाड़ी वैद्य ने घर पर जब परीक्षण किया तो उनकी सांस और नाड़ी चलती पाई गई। इसके बाद से उनका घर पर ही इलाज चल रहा है। मामले में आयोग ने मेडिकल बोर्ड गठित कर जांच रिपोर्ट सौंपने की सिफारिश की थी लेकिन मिश्रा के परिवार ने आयोग द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड को घर में प्रवेश और परीक्षण की अनुमति नहीं दी।

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