नई दिल्ली। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने मीडिया में “कोरोना जिहाद” और “कोरोना आतंकवाद” जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर गहरी आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक याचिका दायर कर उसने कहा है कि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई की मीडिया में हो रही रिपोर्टिंग के दौरान इन शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन शब्दों के इस्तेमाल से मुसलमानों की भावनाओं को ठेस लगती है। इससे यह भी संदेश जा रहा है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के लिए मुस्लिम समाज ही विशेष रूप से जिम्मेदार है जो बेहद गलत है। जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट से इन शब्दों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने की मांग की है। इसके लिए कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला भी दिया है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने मंगलवार को एक प्रेस वक्तव्य जारी कर कहा कि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में इस तरह की रिपोर्टिंग की जा रही है जिससे यह संदेश जा रहा है कि देश में कोरोना संक्रमण के फैलाव के लिए अकेले मुस्लिम समाज ही जिम्मेदार है। यह इस महामारी को भी सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश है जो देश की धार्मिक सद्भावना को चोट पहुंचाती है। उन्होंने इसे मुस्लिम समाज का अपमान भी बताया है। जमीयत की याचिका में इसे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन भी बताया गया है।
 
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मुफ्ती अतीक बस्तावी ने भी इस तरह की रिपोर्टिंग पर अपनी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि मीडिया हमारे समाज की सच्चाइयों को बयान करने वाला सबसे मजबूत स्तंभ है। उससे बेहद सटीक और निष्पक्ष भूमिका की उम्मीद की जाती है। चूंकि उसकी खबरों का समाज पर बड़ा असर पड़ता है, इसलिए अपनी रिपोर्टिंग के दौरान उसे ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जिससे सामाजिक विद्वेष बढ़े।

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