नई दिल्ली। श्रीलंका के एक नए आतंक केंद्र के रूप में उभरने के पीछे के कारणों की जांच में लश्कर-ए-तैयबा की एक बड़ी साजिश का खुलासा हुआ है। शीर्ष खुफिया अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार यह साजिश पिछले कम से कम 14 वर्षों से चल रही थी। जांच में पता चला है कि लश्कर-ए-तैयबा ने भारत को घेरने की रणनीति के तहत इन वर्षों के दौरान श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव और यहां तक कि मलेशिया में भी कितना और किस तरह निवेश किया। अधिकारियों के अनुसार यहां इस बात को स्थापित किए जाने की जरूरत है कि आईएसआई सी विंग और लश्कर-ए-तैयबा जिहाद के मामले में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
अधिकारियों के अनुसार भारत का खुफिया तंत्र लगातार आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों को ट्रैक कर रहा है और उसने श्रीलंका व अन्य पड़ोसी देशों में पनपते इस तरह के आतंकवादी खतरे से निपटने के लिए अपने सभी कौशल और जमीनी स्तर की जानकारियों का इस्तेमाल किया।
पाकिस्तानी खुफियां एजेंसी आईएसआई श्रीलंका में बेरोजगार मुस्लिम युवकों को कट्टरपंथी बनाने और उन्हें नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) से जोड़ने के लिए इदारा खिदमत-ए-खलक (आईकेके) को एक औजार के रूप में इस्तेमाल करती रही है। इसके समानांतर भारत ने तमिलनाडु और केरल में एनटीजे के सदस्यों की मजबूत उपस्थिति के कारण इन राज्यों में अपने सुरक्षा तंत्र को मजबूत किया है।
आईएसआई और उसकी एक खलीफा स्थापित करने की जहरीली विचार प्रक्रिया के उदय को श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव में कुछ लोगों का समर्थन मिला। मालदीव के कम से कम 2००-25० नागरिकों ने सीरिया जैसे संकटग्रस्त स्थानों पर आईएस के लिए लड़ाई लड़ी थी और यही लोग यमन गए, जहां उन्हें और प्रशिक्षण दिया गया। उसके बाद उन्हें कभी माली, कभी चाड, कभी इराक कभी सीरिया में आईएस के झंडे तले लड़ने के लिए भेजा गया।
ऑनलाइन पत्रिका द डिप्लोमेट ने यह कहते हुए इस तथ्य को सत्यापित किया है कि पूर्व एफबीआई एजेंट से कॉन्ट्रैक्टर बने अली सौफान द्वारा संचालित एक निजी खुफिया एजेंसी सौफान ग्रुप द्वारा दिसंबर 2०15 में जारी एक रपट में उन विदेशी लड़ाकों की संख्या दी गई है जिन्होंने स्वेच्छा से सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ा था। सूची में शामिल चार दक्षिण एशियाई देशों (भारत, पाकिस्तान, मलेशिया और मालदीव) से 293 लड़ाके भेजे गए। श्रीलंका हिंद महासागर का एक ऐसा देश है जिसने अपने यहां सलाफिस्ट प्रवृत्ति की तरफ झुकाव रखने वाले कट्टरपंथी इस्लाम को उदय का मौका देकर विश्लेषकों मीडिया को अचरज में डाल दिया।
खुफिया सूत्र बताते हैं कि भारत श्रीलंका में इस्लामिक आतंकवाद पर नजर रखे हुए है जो 2००4 से इसके लिए एक उर्वर जमीन रहा है। श्रीलंका में इस्लामिक कट्टरवाद के उदय का मुख्य कारण हर जगह लश्कर-ए-तैयबा की उपस्थिति रही है। पाकिस्तान के सियालकोट निवासी लश्कर कमांडर मुजामिल भट के नेतृत्व वाले एक विशेष समूह और उसके समर्थकों ने बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका में 2००5 से 2००7 के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की ताकि भारत को घेरने और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में इस जमीन का इस्तेमाल किया जा सके। गौरतलब है कि मुजामिल भट 26/11 के साजिशकर्ताओं में शामिल था। एफबीआई ने अपने 26/11 के आरोपपत्र में भट का नाम डी के रूप में दर्ज किया था और उसे लश्कर-ए-तैयबा का एक प्रमुख सैन्य कमांडर कहा गया था। वह तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के मार्च 2००० में भारत दौरे के पहले जम्मू-कश्मीर के चिट्टीसिंघपोरा में हुए जनसंहार में शामिल था।
खुफिया सूत्र बताते हैं कि मुजामिल भट लश्कर की एक बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा रहा है लेकिन हाल के वर्षों में भारत के खुफिया तंत्र के काफी मजबूत हो जाने की वजह से ज्यादा कामयाब नहीं हो सका। भारत कुछ समय से नेशनल तौहीद जमात एनटीजे पर नजर रख रहा है। भारत ने बीते 21 अप्रैल को ईस्टर संडे पर हुए आत्मघाती हमलों से पहले के कुछ दिनों के दौरान बड़ी तत्परता से कार्रवाई योग्य जानकारियां श्रीलंका को उपलब्ध कराई थीं और यह भारत में गिरफ्तार आईएस के एक संदिग्ध से पूछताछ के दौरान मिली जानकारी से संभव हो पाया था। संदिग्ध ने भारतीय जांचकतार्ताओं को जहरान हाशमी का नाम बताया था जिसने प्रशिक्षण लिया था और वह श्रीलंका के एक चरमपंथी समूह से जुड़ा हुआ था और उसे ईस्टर पर हुए आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार माना गया।
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