नई दिल्ली। भारत में वामपंथियों की समाज और देश के प्रति प्रतिबद्धता को लेकर पिछले करीब एक दशक में सवाल उठते रहे हैं। खासकर, छात्र आंदोलन को लेकर उनका रवैया सवालों के घेरे में रहा है। भाजपा उन पर छात्र आंदोलन को हिंसा की ओर मोड़ने का आरोप लगाती रही है। इंफोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति स्वीकार कर चुके हैं कि वह कभी वामपंथी थे पर वामपंथ की “असलियत” जानने के बाद उन्होंने “भ्रमित वामपंथी” के बजाय “उदार पूंजीवादी” बनना पसंद किया। और अब अकादमिक जगत के 200 से ज्यादा विद्वानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वाम विचारधारा से जुड़े लोगों पर देश में शिक्षण का माहौल खराब करने का आरोप लगाया है। पत्र लिखने वाले लोगों में कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के कुलपति भी शामिल हैं।

इस पत्र में शिक्षाविदों ने कहा कि हम शिक्षाविदों का समूह शिक्षण संस्थानों में बन रहे माहौल पर अपनी चिंताएं बताना चाहते हैं। हमने यह महसूस किया है कि शिक्षण संस्थानों में शिक्षा सत्र के रोकने और बाधा डालने की कोशिश छात्र राजनीति के नाम पर वामपंथ एक एजेंडे के तहत कर रहा है। 

इन विद्वानों ने अपने पत्र में लिखा, “हमारा मानना है कि छात्र राजनीति के नाम पर अतिवादी वामपंथी एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है। हाल में ही जेएनयू से जामिया और एएमयू से जाधवपुर विश्वविद्यालय तक में सामने आए घटनाक्रम से पता चलता है किस तरह से अकादमिक माहौल को खराब किया जा रहा है। इसके पीछे लेफ्ट ऐक्टिविस्ट्स के एक छोटे से वर्ग की शरारत है।” पत्र में लिखा गया है कि लेफ्ट विंग के ऐक्टिविस्ट्स की मंडली देश में अकादमिक माहौल को खराब करने में जुटी है।

“शिक्षण संस्थानों में लेफ्ट विंग की अराजकता के खिलाफ बयान” शीर्षक से लिखे गए इस पत्र में कुल 208 अकादमिक विद्वानों के हस्ताक्षर हैं। इस पत्र को लिखने वालों में सरदार पटेल विश्वविद्यालय के कुलपति शिरीष कुलकर्णी, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति एचसीएस राठौर और हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय के कुलपति आरपी तिवारी शामिल हैं।

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों और जेएनयू में हुई हिंसा के बाद लिखे गए इस पत्र को सरकार की ओर से अकदामिक जगत में समर्थन जुटाने की कोशिश माना जा रहा है। वाम विचारधारा से जुड़े समूहों पर हमला बोलते हुए पत्र में कहा गया है कि “लेफ्ट विंग राजनीति की ओर से लगाई गई सेंशरशिप के चलते स्वतंत्र रूप से कुछ भी बोलना और कोई सार्वजनिक कार्यक्रम करना मुश्किल हो गया है।”

 

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