महालक्ष्मी का यह मंदिर 1800 साल पुराना हैऔर इस मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य ने देवी महालक्ष्मी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी।लोगों की मान्यता के मुताबिक शालि वाहन घराने के राजा कर्णदेव ने इसका निर्माण करवाया था और आगे चलकर इसमें 35 छोटे-छोटे मंदिरों को भी बनवाया था।करीब 27 हज़ार वर्गफुट में फैला यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
इस महालक्ष्मी मंदिर को लेकर कहा जाता है कि कोल्हापुर की श्री महालक्ष्मी या करवीरवासिनी अम्बा बाई मंदिर कई हिंदू ग्रंथों में वर्णित शक्ति पीठों में से एक है। केवल कुछ ही लोग जानते हैं कि महालक्ष्मी का दूसरा नाम करवीर निवासिन आई अंबाबाई है जो भगवान शिव की पत्नी अम्बा बाई से लिया गया है.इसे श्री पीठम के नाम से भी जाना जाता है, और मंदिर की सरंचना बड़े पत्थर में कोरी हुई सुन्दर नक्शी में की गई है।
यह पहली बार ७ वीं सदी में बनाया गया था और इसकी वास्तुकला चालुक्य साम्राज्य से संबंधित है।प्रसिद्ध लोककथाओं का कहना है कि जब यह देवी कोल्हापुर में बस गई थी, तब तक उनके रहने के लिए कोई जगह नहीं थी और इसलिए उनके वफादार सेवकों ने एक बड़ा मंदिर बनाया था।देवी महालक्ष्मी को शक्ति की देवी कहा जाता है और काले पत्थर से बनी देवी की मुख्य मूर्ति ५००० से ६००० साल पुरानी मानी जाती है।
मंदिर के आंगन में प्रत्येक नवग्रह, भगवान सूर्य, देवी महिषासुरमर्दनि, भगवान विठ्ठल और उनकी पत्नी रखुमाई, भगवान शिव, भगवान विष्णु, देवी तुलजा भवानी और कई अन्य देवताओं को समर्पित मंदिर भी हैं।चार भुजा वाली देवी की मूर्ति को दैनिक रूप से अलंकार पुजन के समय विशेष रूप से स्वर्ण गहने और समृद्ध वस्त्रों के साथ सजाया जाता है।हर बार जब सूरज कि किरणे दीवार के एक छोटे छिद्र से देवी के पैरों पर गिरती है तब किरनोत्सव की घटना मनायी जाती है।
इस महालक्ष्मी मंदिर को लेकर कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थित खंभों से एक ऐसा रहस्य जुड़ा है जिसे सुलझाने में विज्ञान भी नाकाम साबित हुआ है।महालक्ष्मी मंदिर के चारों दिशाओं में एक-एक दरवाजा मौजूद है और इस मंदिर में मौजूद खंभों को लेकर मंदिर प्रशासन का दावा है कि यहां कितने खंभे है यह आज भी रहस्य ही है.इस मंदिर के नक्काशियों वाले खंभे काफी मशहूर हैं लेकिन इन्हें आज तक कोई भी नहीं गिन पाया है। मंदिर प्रशासन की मानें तो कई बार लोगों ने इन्हें गिनने की कोशिश की लेकिन जिसने भी ऐसा किया उसके साथ कोई न कोई अनहोनी घटना देखने को मिली है।
कहा जाता है कि माता के इस मंदिर के भीतर अरबों का खज़ाना छुपा हुआ है।करीब 5 साल पहले जब इस खज़ाने को खोला गया तो उसमें हजारों साल पुराने सोने, चांदी और हीरों के ऐसे आभूषण मिलें, बाज़ार में जिनकी कीमत अरबों रुपए में आंकी गई हैं।
इतिहासकारों की माने तो कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में कोंकण के राजाओं, चालुक्य राजाओं, आदिल शाह, शिवाजी और उनकी मां जीजाबाई ने भी चढ़ावा चढ़ाया था. अरबों के इस खज़ाने की सुरक्षा के लिहाज से इसका बीमा भी कराया गया है।
यह शक्ति पीठों को छह पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है जहां भक्त या तो उद्धार प्राप्त कर सकते हैं या इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। भक्तों का देवी में बहुत विश्वास है और वह, यह भी विश्वास करते हैं कि देवी हर तरह से उनकी उद्धारकर्ता है।
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