मायावती गठबंधन की घोषणा के वक्त भी नहीं भूलीं उस अपमान को

23 साल पहले हुआ था ‘गेस्ट हाउस कांड’ जब एक उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर बसपा सुप्रीमो मायावती की आबरू पर हमला करने पर आमादा थी।

लखनऊ  कहा जाता है कि राजनीति में न तो कोई स्थायी दुश्मन होता है और न दोस्त। …और जब राजनीति ‘अवसरों की राजनीति’ में बदला जाए तो क्या होता है, शनिवार को इसका गवाह बनी नवाबों की नगरी लखनऊ, जब दो धुर विरोधी दल साझे दुश्मन का ‘शिकार करने के लिए’ एक मंच पर आ गए। विडंबना देखिए कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसके लिए अपने जीवन के सबसे बड़े अपमान की भी ‘अनदेखी’ कर दी। ‘अनदेखी’ इसलिए कि गेस्ट हाउस कांड जैसी घटना को भुला पाना किसी भी महिला के लिए संभव नहीं है।

दरअसल बसपा और सपा ने लोकसभा चुनाव-2019 को भाजपा के खिलाफ एक जंग के रूप मे लिया है। लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड के 23 साल बाद दोनों दल एक बार फिर साथ हो गए हैं। हालांकि गठबंधन का ऐलान करने के लिए बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन के दौरान भी मायावती को गेस्ट हाउस कांड याद रहा। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रहित में हम उस कांड को भुलाकर साथ आए हैं।’

अवसरों का खेल’ बनी राजनीति

बहरहाल, बसपा-सपा की ताजा गलबहियों ने साफ कर दिया है कि राजनीति अब विशुद्ध रूप से ‘अवसरों का खेल’ और ‘राजनीतिक सौदेबाजी’ बनकर रह गई है जिसमें विचारधारा और नैतिकता जैसे बातें बेमानी हो चुकी हैं और अवसरवादिता पर बड़ी चतुराई से कभी ‘राष्ट्रहित’, कभी ‘जनती की मांग’ तो कभी, ‘लोकतंत्र की रक्षा’ का मुलम्मा चढ़ा दिया जाता है।

याद करिए, इससे पहले जब सपा और बसपा में 1993 में गठबंधन हुआ था, उस समय बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन चल रहा था। मंदिर-मस्जिद विवाद के कारण ध्रुवीकरण चरम पर था। इसी के मद्देनजर दो धुर विरोधी दलों सपा और बसपा ने साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। गठबंधन ने चार दिसंबर 1993 में सत्ता की कमान संभाली और छह माह के लिए मायावती मुख्यमंत्री बनीं। दो जून 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा कर लिया और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। मुलायम सिंह यादव की सरकार अल्पमत में आ गई। इसके बाद ही कुख्यात गेस्टहाउस कांड हुआ जब एक उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर बसपा सुप्रीमो की आबरू पर हमला करने पर आमादा थी। अगले ही दिन तीन जून 1995 को मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर सत्ता की कमान संभाली।

राजनीति भले ही कितनी ही करवटें बदलते हुए कई मोड़ पार कर चुकी हो पर मायावती के जेहन में गेस्टहाउस कांड अज भी जिंदा है। एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान बसपा सुप्रीमो ने इस कांड को लेकर अखिलेश यादव का बचाव करते हुए कहा था कि उस समय अखिलेश यादव राजनीति में आए भी नहीं थे।

gajendra tripathi

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