भारतीय मूल के सारांश शर्मा के नेतृत्व वाली मिराच कैपिटल ने कहा कि करीब एक साल से जेल में बंद सहारा प्रमुख सुब्रत राय को छुड़ाने के लिए समूह के प्रयासों के बीच मिराच सामने आई थी। लेकिनए 2.05 अरब डॉलर का फाइनेंसिंग से जुड़ा सौदा फर्जी पत्र विवाद में फंस गया। उसने कहा कि भारतीय समूह अनिच्छुक विक्रेता बना हुआ है।बयान जारी कर मिराच ने कहा कि उसने 26.25 लाख डॉलर की राशि सेबी-सहारा फंड को भेज दी है। साथ ही सहारा समूह को कर्ज देने का प्रस्ताव रद कर दिया है। इसमें विदेश में स्थित तीन होटलों के लिए समूह की ओर से बैंक ऑफ चाइना से लिए गए लोन को निवेशकों के नए समूह को ट्रांसफर किया जाना शामिल है।
मिराच ने कहा है कि सहारा के साथ 10 दिसंबर, 2014 के करार के तहत वह कानूनी, अकाउंटिंग तथा लेनदेन संबंधी शुल्क सहारा से लेने की हकदार थी। लेकिन अपने ऊपर लगे निराधार आरोपों को देखते हुए पुरानी बातों को भुला नई शुरुआत करने के इरादे से धन लौटाया है। यह अलग बात है कि मामले में उस पर 10,75,000 डॉलर का खर्च आया है। लेकिन इसे लौटाने का मकसद सुप्रीम कोर्ट को यह दिखाना है कि अमेरिकी कंपनी लागत वहन करने को तैयार है। उसे 20 फरवरी को निष्पक्ष फैसले का इंतजार है। मालूम हो कि कोर्ट ने सहारा-मिराच सौदे को पूरा करने के लिए 20 फरवरी तक का समय दिया है।
विवाद की शुरुआत-
मिराच ने पलटवार करते हुए सहारा समूह पर आरोप लगाए कि जमानत के लिए अदालत की शर्त के बावजूद सहारा हमेशा से ही इन संपत्तियों की बिक्री करने का अनिच्छुक रहा है।
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