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मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश का मामला : मक्का- मदीना में क्या है नियमः सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। मुस्लिम महिलाओं को नमाज अदा करने के लिए मस्जिदों में प्रवेश की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई हुई। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार व अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि मुंबई की हाजी अली दरगाह में तो महिलाएं जाती हैं। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि देश में कई ऐसी मस्जिद हैं जहां पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश को लेकर मक्का-मदीना में क्या नियम है?

न्यायमूर्त बोबडे ने कहा, “क्या मौलिक संवैधानिक समानता किसी विशेष पर लागू होती है? क्या मंदिर और मस्जिद सरकार के हैं? इन्हें थर्ड पार्टी चलाती है। जैसे आपके घर मे कोई आना चाहे तो आपकी इजाजत जरूरी है। इसमें सरकार कहां से आ गई?”

यासमीन जुबेर अहमद पीरजादे और जुबेर अहमद नजीर अहमद पीरजादे नाम के एक मुस्लिम दंपति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और सेंट्रल वक्फ काउंसिल को इस बाबत जरूर दिशा निर्देश जारी करने की मांग की है। याचिका में इस परंपरा को असंवैधानिक और अवैध करार देने का आग्रह किया गया है। याचिका में मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश औऱ नमाज अदा करने पर लगी रोक को भेदभावपूर्ण बताया गया है और कहा गया है कि इस रोक को असंवैधानिक करार दिया जाए क्योंकि यह रोक असंवैधानिक और आर्टिकल 14, 15, 21, 25 और 29 के खिलाफ है।

गौरतलब है कि भारत में सुन्नी मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और नमाज अदा करने पर रोक है जबकि मोहम्मद साहब के दौर में महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश कर नमाज पढ़ने की इजाजत थी। हालांकि दिल्ली की जामा मस्जिद समेत कई मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश करने की तो इजाजात है लेकिन वे पुरुषों की तरह कतार में बैठकर नमाज नहीं पढ़ सकतीं। उन्हें नमाज पढ़ने के लिए अलग स्थान दिया जाता है। वह मगरिब के बाद भी मस्जिद में नमाज नहीं पढ़ सकतीं। दरअसल, केरल के सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म से गुजरने वाली हिंदू महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक हटने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश और नमाज अदा करने के लिए मुहिम छेड़ने के संकेत दिए थे। केरल की सामाजिक कार्यकर्ता वीपी जुहरा का कहना था कि यह रोक महिलाओं के नैतिक अधिकारों और बराबरी के अधिकार का उल्लंघन करती है।

gajendra tripathi

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