नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निर्भया के 2 दोषियों को बड़ा झटका देते हुए उनकी क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की 5 न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने विनय शर्मा और मुकेश द्वारा दायर की गई याचिकाओं को खारिज किया। इस तरह अब इस मामले को चारों दोषियों को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे फांसी दिया जाना तय हो गया। क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई खुली अदालत में न होकर जजों के चैंबर में दोपहर पौने 2 बजे हुई जिसमें किसी भी पक्ष के वकील के मौजूद होने और बहस करने की इजाज़त नहीं होती है।
इस मामले में चार दोषी हैं जिनमें से 2 हत्यारों ने ही अभी तक क्यूरेटिव पिटीशन दायर की है, बाकी दो दोषी भी क्यूरेटिव पिटीशन दायर सकते हैं। याचिका दायर करने में देरी करके फांसी की सजा को और कुछ दिन टालने की कोशिश होगी। क्यूरेटिव पिटीशन के बाद दोषियों के पास राष्ट्रपति के यहां दया याचिका दायर करने का क़ानूनी अधिकार बचा है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका 18 दिसंबर को ख़ारिज की थी। अन्य तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट पहले ख़ारिज कर चुका था जिसके बाद 7 जनवरी को दिल्ली की पटियाला हाउस की ट्रायल कोर्ट ने चारों दोषियों को 22 जनवरी 2020 को फांसी पर लटकाने के लिए डेथ वांरट जारी कर दिया था। यह वारंट निर्भया की मां की अर्ज़ी पर जारी हुआ था। अर्ज़ी में ट्रायल कोर्ट से मांग की गई थी कि 7 जनवरी को दोषियों की कोई भी याचिका सुप्रीम कोर्ट में या राष्ट्रपति के पास लंबित नहीं है, इसलिए ट्रायल कोर्ट फांसी की सजा को तामील में लाने के लिए कार्रवाई करे।
क्यूरेटिव याचिका में विनय शर्मा ने कहा था कि आपराधिक कार्यवाही के कारण उसका पूरा परिवार पीड़ित हुआ है। इसमें कहा गया कि “अकेले याचिकाकर्ता को दंडित नहीं किया जा रहा है, बल्कि आपराधिक कार्यवाही के कारण उसका पूरा परिवार अत्यंत पीड़ित हुआ है. परिवार की कोई गलती नहीं, फिर भी उसे सामाजिक प्रताड़ना और अपमान झेलना पड़ा है।” वरिष्ठ अधिवक्ता अधिस सी. अग्रवाल और एपी सिंह के जरिए दायर याचिका में कहा गया था, “याचिकाकर्ता के माता-पिता वृद्ध और अत्यंत गरीब हैं। इस मामले में उनका भारी संसाधन बर्बाद हो गया और अब उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगा है।”
16 दिसंबर 2012 को फार्मेसी की 23 वर्षीय छात्रा के साथ चलती बस दुष्कर्म किया गया। दोषियों की ओर से पीड़िता को काफी अत्याचार भी झेलना पड़ा जिसके बाद उसकी मौत हो गई। इसके बाद अपराध में शामिल सभी छह आरोपितों को गिरफ्तार कर दुष्कर्म और हत्या का मामला दर्ज किया गया। आरोपितों में से एक नाबालिग था जिसे किशोर (जुवेनाइल) अदालत के सामने पेश किया गया जबकि एक अन्य आरोपित ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी। बाकी बचे चार दोषियों को ट्रायल कोर्ट सितंबर 2013 में मौत की सजा सुनाई थी। मार्च 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा। इसके बाद मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सजा में कोई बदलाव नहीं किया और अदालत ने दोषियों की पुनर्विचार याचिकाओं को भी खारिज कर दिया।
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