नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आदेश दिया कि जिलों में बाल यौन शोषण के मुकदमों के लिए केंद्र से वित्त पोषित विशेष अदालतें गठित की जाएं। ये अदालतें उन जिलों में गठित की जाएंगी जहां यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण कानून (पोक्सो) के तहत सौ या इससे अधिक मुकदमे लंबित हैं। शीर्ष आदालत ने आदेश दिया है कि ये अदालतें 60 दिन में काम करना शुरू कर दें। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अब 26 सितंबर को आगे सुनवाई करेगा। 

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि इन अदालतों में सिर्फ पोक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों की ही सुनवाई होगी। पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार पोक्सो कानून से संबंधित मामलों को देखने के लिए अभियोजकों और सहायक कार्मिको को संवेदनशील बनाये और उन्हें प्रशिक्षित करे। कोर्ट ने राज्यों के मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि ऐसे सभी मामलों में समय से फॉरेन्सिक रिपोर्ट पेश की जाए।

पीठ ने केंद्र सरकार को इस आदेश पर अमल की प्रगति के बारे में 30 दिन के भीतर रिपोर्ट पेश करने और पोक्सो अदालतों के गठन और अभियोजकों की नियुक्ति के लिए धन उपलध कराने को कहा। देश में बच्चों के साथ हो रही यौन हिंसा की घटनाओं में तेजी से वृद्धि पर स्वतं: संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने इस प्रकरण को जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था। साथ ही इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता वी. गिरि को न्याय मित्र नियुक्त करने के साथ ही शुरू में ऐसे मामलों का विवरण भी तलब किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामलों के और अधिक राष्ट्रव्यापी आंकड़े एकत्र करने से पोक्सो कानून के अमल में विलंब होगा। पोक्सो से संबंधित मामलों की जांच तेजी से करने के लिए प्रत्येक जिले में फारेन्सिक प्रयोगशाला स्थापित करने संबंधी न्याय मित्र वी. गिरि के सुझाव पर पीठ ने कहा कि यह इंतजार कर सकता है और इस बीच, राज्य सरकारें यह सुनिश्चत करेंगी कि ऐसी रिपोर्ट समय के भीतर पेश हो ताकि इन मुकदमे की सुनवाई तेजी से पूरी हो सके।

error: Content is protected !!