नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि वाहन दुर्घटना के मामले में पीड़ित की मौजूदा आमदनी में भविष्य की संभावित आमदनी को जोड़कर ही मुआवजा तय किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मृत व्यक्ति के परिवारीजनों की ओर से दाखिल अर्जी पर दिए फैसले में उनकी मुआवजा राशि बढ़ा दी और कहा कि घटना के लिए जिम्मेदार वाहन की इंश्योरेंस कंपनी बढ़ी हुए कुल मुआवजा राशि 17 लाख 50 हजार रुपये का भुगतान करे और साथ ही मुआवजा राशि पर 7.5 प्रतिशत की दर से ब्याज का भी भुगतान किया जाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मुआवजा बढ़ाना जरूरी है तभी संपूर्ण न्याय सुनिश्चित होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हादसे में मारे गए व्यक्ति हरीश आर्या की आखिरी इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) पर विचार न करके गलती की है। वह रिटर्न हरीश ने मरने से पहले दाखिल की थी और उसमें आमदनी एक लाख रुपये सालाना बताई गई थी। हाईकोर्ट ने उससे पहले के तीन आईटी रिटर्न का औसत 52,635 रुपये मृतक की सालाना आमदनी मानी जो गलती थी। वहीं निचली अदालत ने आखिरी आईटी रिटर्न 2006-07 की आमदनी 98500 को माना लेकिन उसने भविष्य की आमदनी को उसमें नहीं जोड़ा।
न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा की अगुवाई वाली पीठ ने अपने अहम फैसले में कहा कि हरीश आर्या ने 2006-07 में जो आईटी रिटर्न दाखिल की थी उसमें उसने अपनी आमदनी लगभग एक लाख रुपये सलाना बताई थी। यह रिटर्न उसने 20 अप्रैल 2007 को दाखिल की थी और वाहन दुर्घटना में उसकी मौत 18 जून 2007 को हुई थी। उस समय वह 35 साल का था। उसकी पत्नी, बच्चे और अभिभावक उस पर निर्भर थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने एक लाख रुपये सलाना आमदनी के हिसाब से आकलन कर कुल मुआवजा 12 लाख 55 हजार तय किया जिसमें भविष्य की आमदनी का जिक्र नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक पीठ के फैसले के तहत अनिवार्य है कि मौजूदा आमदनी में भविष्य की संभावित आमदनी भी जोड़ी जाएगी और उस आधार पर मुआवजे का निर्धारण होगा। इस तरह मौजूदा सलाना आमदनी एक लाख में हम 40 प्रतिशत संभावित भविष्य की आमदनी जोड़ते हैं। चूंकि पांच लोग मृतक (हरीश) पर निर्भर थे, इस तरह उसकी आमदनी का एक चौथाई उसके खुद पर खर्च मानते हैं और 16 साल तक की आमदनी का का आकलन करते हुए यह रकम 16,80,000 रुपये होती है। साथ ही अन्य खर्च को जोड़ने पर कुल मुआवजे की रकम 17 लाख 50 हजार रुपये होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम अनुच्छेद-142 के तहत मिले विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए इंश्योरेंस कंपनी को निर्देश देते हैं कि वह हरीश आर्या के परिवारीजनों को 12 हफ्तों में 17 लाख 50 हजार रुपये केमुआवजे का भुगतान करे और अर्जी दाखिल करने की तारीख से लेकर भुगतान की तारीख का साढ़े 7.5 प्रतिशत ब्याज का भी भुगतान करे।
13 साल पहले हुई थी सड़क मार्ग दुर्घटना
यह मामला उत्तराखंड के चम्पावत जिले के बनबसा थाना क्षेत्र का है। टैक्सी का काम करने वाले हरीश आर्या 18 जून 2007 को कहीं जा रहे थे। साथ में उनके चाचा भी थे। रास्ते में टनकपुर-खटीमा हाइवे पर उन्होंने अपना वाहन रोका और नीचे उतरे। इसी दौरान गलत साइड से आ रही टाटा सूमो ने उन्हें टक्कर मार दी। हरीश को अस्पताल ले जाया गया लेकिन उनकी मौत हो गई। उनके चाचा के बयान के आधार पर मुकदमा दर्ज किया गया। जिला अदालत में मोटर व्हीकल क्लेम ट्रिब्यूनल ने इंश्योरेंस कंपनी से कहा कि वह हरीश के परिवारीजनों को 12 लाख 55 हजार रुपये के मुआवजे का भुगतान करे। इस फैसले को घटना में शामिल वाहन का इंश्योरेंस कवर करने वाली कंपनी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने हरीश की सालाना आमदनी एक लाख से घटाकर 52 हजार मानी और मुआवजा राशि 5 लाख 81 हजार तय कर दी। इस फैसले को हरीश आर्या के परिवारीजनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
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