नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश समेत अन्य धर्मों के पवित्र स्थलों में महिलाओं से भेदभाव के मुद्दे पर सुनवाई हुई। आस्था और परंपरा बनाम मौलिक अधिकारों को लेकर  शीर्ष अदालत के 9 जजों की संविधान पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। मुख्य न्यायधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “हम सबरीमला पर पुनर्विचार नहीं, बड़ा मुद्दा तय करेंगे। इसमें मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के खतना और पारसी महिलाओं के गैर-पारसी से शादी करने पर “अगियारी” (अग्निमंदिर-  पारसी पूजा स्थल) में जाने से रोक से जुड़े मुद्दे शामिल हैं।” मामले की अगली सुनवाई गुरुवार, 6 फरवरी 2020 को होगी।

सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सभी पक्षों में सवालों को लेकर सहमति नहीं बन पाई है। पीठ को सवाल खुद तय करने चाहिए जिस पर सुनवाई हो। जरूरी नहीं कि इन्हें खुली अदालत में तय किया जाए। इस पर वकील फली नरीमन ने 5 जजों की संविधान पीठ के फैसले को बड़ी पीठ को भेजने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि सबरीमाला में महिलाओं के जाने पर पुनर्विचार करते हुए दूसरे धर्मों की परंपराओं को इसमें जोड़ दिया गया। इसकी जरूरत नहीं थी।

हम बड़े मुद्दे तय करेंगेः सीजेआई

सीजेआई ने कहा, “हम यहां सबरीमला पर पुनर्विचार के लिए नहीं, बल्कि बड़े मुद्दे को तय करने के लिए बैठे हैं जिसमें मुस्लिम महिलाओं की मस्जिद में प्रवेश की मांग भी है। इसके साथ ही दाउदी बोहरा समाज में महिलाओं का खतना और पारसी महिलाओं के दूसरे धर्म में शादी करने पर “अगियारी”पर रोक को चुनौती दी गई है। एक वर्ग का कहना है कि मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में तो प्रवेश कर सकती है लेकिन वे पुरुषों के साथ इबादत नहीं कर सकतीं।”

ये ऐसे मुद्दे जिसका असर सभी धर्मों पर पड़ेगा: सिब्बल

वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि ये ऐसे मुद्दे हैं जिसका असर सभी धर्मों पर पड़ेगा। आप जो भी बोलेंगे उसका असर सभी पर होगा। इसका असर जाति व्यवस्था पर भी पड़ेगा, आप इसे कैसे तय करेंगे? इस पर सीजेआई ने कहा- हम इस आपत्ति को एक मुद्दे के रूप में समझेंगे और सुनेंगे भी… हम केवल उन लेखों की व्याख्या तय करने जा रहे हैं जो सबरीमाला और अन्य मामलों में भी लागू किए गए हैं।

सीजेआई ने पिछले गुरुवार को कहा था कि अदालत सुनवाई के दौरान महिला अधिकारों, धार्मिक विश्वास जैसे बिंदु पर न्यायिक समीक्षा की गुजाइंश पर विचार करेगी।

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