अदालत ने कहा, ‘उदाहरण के लिए यदि किसी बच्चे को किसी ऐसे निजी विद्यालय में भेजा जाता है जो कि यूपी बोर्ड की ओर से संचालित नहीं है तो ऐसे अधिकारियों या निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर से फीस के रूप में भुगतान किये जाने वाली राशि के बराबर धनराशि प्रत्येक महीने सरकारी खजाने में तब तक जमा की जाए जब तक कि अन्य तरह के प्राथमिक स्कूल में ऐसी शिक्षा जारी रहती है।’ अदालत ने कहा, ‘इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों को, यदि वे सेवा में हैं तो उन्हें कुछ समय (जैसा मामला हो) के लिए अन्य लाभों से वंचित रखा जाये जैसे वेतन वृद्धि, पदोन्नति या जैसा भी मामला हो।’ अदालत ने इसके साथ ही कहा कि यह एक उदाहरण है।
अदालत ने कहा कि सरकार की ओर से उचित प्रावधान किये जा सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपरोक्त व्यक्तियों को इसके लिए बाध्य किया जाए कि वे अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से संचालित प्राथमिक विद्यालयों में दिलायें।
यह आदेश उमेश कुमार सिंह एवं अन्य की ओर से दायर उस याचिका पर आया जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश में 2013 और 2015 के लिए सरकारी प्राथमिक विद्यालयों एवं जूनियर हाईस्कूल के वास्ते सहायक शिक्षकों के चयन की प्रक्रिया को चुनौती दी थी।
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