कानपुर। दुनियाभर के मुसलमानों का रहनुमा होने का दावा करने वाला पाकिस्तान दरअसल किसी का सगा नहीं है। खासकर भारत का हर नागरिक उसके लिए सिर्फ और सिर्फ दुश्मन है। विश्वास न हो तो कानपुर के शमसुद्दीन से पूछिए। उनके जीवन के 8 बेशकीमती साल बेशुमार यातनाओं के बीच पाकिस्तान की जेलों में बर्बाद हो गए। बहरहाल, बुजुर्ग शमसुद्दीन अपने मादरे-वतन लौट आए हैं। अपने वतन की मिट्टी चूमी और परिवार के लोगों से गले मिलकर फफक पड़े। 28 साल से सीने में जमा दर्द आंसू बनकर बह निकला। मोहल्ले वालों ने शमसुद्दीन का स्वागत फूलों की मालाएं पहनाकर किया।
शमसुद्दनीन ने इस मौके पर कहा कि उनकी दोनों सरकारों से अपील है कि दोनों देशों में निर्दोष लोगों को तंग न किया जाए क्योंकि उनका कोई दोष नहीं होता।
परिवार वालों से विवाद होने पर शमसुद्दीन 1992 में अपने परिचित के पास पाकिस्तान चले गए थे। वहां हालात सही न होने की वजह से वह वक्त पर निकल नहीं पाए और उनके वीजा की मीयाद खत्म हो गई। बाद में अपने परिचित के कहने पर पाकिस्तान की फर्जी नागरिकता ले ली और जूते-चप्पल बनाने का काम करने लगे। पासपोर्ट रिन्यू कराने के दौरान वर्ष 2012 में उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और भारतीय जासूस साबित करने के लिए बुरी तरह यातनाएं दीं। बाद में उन्हें गलत तरीके से देश में दाखिल होने के आरोप में जेल में डाल दिया गया। पिछली 26 अक्टूबर को उन्हें भारतीय फौज के हवाले कर दिया गया, जहां उन्हें अमृतसर के क्वारनटीन सेंटर में रखा गया। क्वारनटीन की अवधि पूरे होने और कागजी औपचारिकता पूरी होने के बाद अमृतसर से कानपुर के लिए रवाना कर दिया गया। सोमवार को थाने में कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद वह बजरिया स्थित अपने मोहल्ले मोहाल पहुंचे तो वहां जश्न का माहौल था। लोगों ने फूल-मालाएं पहनाकर उनका स्वागत किया। बरसों बाद अपनों के बीच पहुंचे शमसुद्दीन की आंखें छलक उठीं। अपनों से मिलकर वह खूब रोये।