नई दिल्ली। कई चिकित्सा विज्ञानी और चिकित्सा विशेषज्ञों के समूह समय-समय पर यह दावा करते रहे हैं देश के कुछ क्षेत्रों में कोरोना वायरस का सामुदायिक प्रसार (Community spread) शुरू हो चुका है। हालांकि सरकार ऐसी किसी स्थिति से इन्कार करती रही है। लेकिन, अब केंद्र सरकार के ही एक बड़े संस्थान इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने जो दावा किया है वह सचमुच डराने वाला है। आईसीएमआर द्वारा कराई गई एक स्टडी में कहा गया है कि अगस्त में कोरोना वायरस अपने पीक पर होगा। इस महामारी के चलते भारत में नवंबर तक आईसीयू बेड्स खत्म हो सकते हैं। स्टडी में यह भी दावा किया गया है कि देश में 25 लाख करोड़ रुपये केवल कोरोना वायरस से जूझने में खर्च हो सकते हैं। कोरोना वायरस के लिए फिलहाल केंद्र सरकार ने 15 हजार करोड़ का फंड रखा है। 25 लाख करोड़ रुपये का अनुमान उससे कहीं बहुत आगे निकल रहा है।
यह स्टडी आईसीएमआर के वैज्ञानिकों और पीजीआई चंडीगढ़ के डॉक्टरों ने संयुक्त रूप से की है जिसका पूरा खर्च आईसीएमआर ने उठाया है। हालांकि आईसीएमआर का कहना है कि इसे हमारी राय ना माना जाए। इस स्टडी ग्रुप में डॉ. शंकर प्रिंजा, डॉ. पंकज बहुगुणा, डॉ. याशिका चुग, डॉ. अन्ना वस्सल, डॉ. अरविंड पांडे, डॉ. सुमित अग्रवाल और डॉ. नरेंद्र कुमार अरोड़ा शामिल थे।
देश में प्रति एक हजार लोगों पर 1.6 मौतों का अनुमान
मौजूदा हालत में स्टडी का आकलन ये है कि जुलाई के मध्य तक कोरोनो वायरस संक्रमण पीक पर होता लेकिन 8 हफ्ते के संपूर्ण लॉकडाउन के चलते अब जुलाई के 34 से 76 दिन बाद कोरोना का कहर पीक पर होगा। भारत में प्रति एक हजार लोगों पर 1.6 मौतों का अनुमान है।
मौजूदा हालात में हर 10 लाख की आबादी पर 1805 बेड्स, 394 आईसीयू बेड्स और 69 वेंटिलेटर की जरूरत है। फिलहाल भारत में जो संसाधन मौजूद हैं उनसे सितंबर के तीसरे हफ्ते तक काम चल जाएगा। अगर लॉकडाउन के फायदों को भी गिन लिया जाए और यह मान लिया जाए कि टेस्ट, आईसोलेशन और कॉन्टेक ट्रेसिंग कम से कम 60 प्रतिशत कामयाबी के साथ की जा रही है तो भी नवंबर के पहले हफ्ते तक ही संसाधन मौजूद हैं। उसके बाद अगले 5.4 महीनों तक आइसोलेशन बेड्स, 4.6 महीनों तक आईसीयू बेड्स और 3.9 महीनों तक वेंटिलेटर की कमी रहेगी।
अध्ययनकर्ताओँ का कहना है कि मार्च से मई तक के बीच लगे लॉकडाउन की वजह से देश में आईसीयू बेड्स और वेंटिलेटर की जरूरत कुछ कम हुई है। आईसीयू की जरूरत 83 प्रतिशत तक घटी। लेकिन, अब यह साफ नजर आ रहा है कि भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना संक्रमण की चपेट में है और जल्द ही भारत में इटली और स्पेन जैसी स्थिति होगी जहां ये तय करना पड़ेगा कि किसका इलाज करना है और किसे उसके हाल पर छोड़ देना है।
तय करना पड़ेगा कि किसका इलाज करना है, किसे उसके हाल पर छोड़ देना है
हालांकि स्टडी करने वाले रिसर्चर का मानना है कि अगर कोरोना की चपेट में आई 80 प्रतिशत आबादी को इंफेक्शन के तीन दिन के अंदर पहचान कर आइसोलेट किया जा सका तो इंफेक्शन के बढ़ने की दर तीन गुना घटाई जा सकती है। इसके लिए बड़े पैमाने पर टेस्ट करने और मरीज को भर्ती करने की जरूरत है। केंद्रीय स्वास्थय मंत्रालय के आकलन के मुताबिक कुल मरीजों में से 3 प्रतिशत को आईसीयू की जरूरत पड़ेगी। तीन प्रतिशत से कम को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी और केवल 0.45 प्रतिशत को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी।
कैसे हो सकता है बचाव
– पब्लिक हेल्थ सिस्टम को दुरूस्त किया जाए
– पॉजिटिव मरीजों को आइसोलेट किया जाए
– टेस्टिंग और कांटेक्ट ट्रेसिंग बढ़ाई जाए