नई दिल्ली। कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के दुर्दशा पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों से बस या ट्रेन का किराया नहीं लिया जाएगा। उन्हें राज्य द्वारा भोजन प्रदान किया जाना चाहिए। ट्रेनों में रेलवे द्वारा भोजन और पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए यह आदेश दिया है। अदालत ने इसके साथ ही प्रवासी मजदूरों को दी जा रही मदद पर सभी राज्यों को 5 जून 2020 तक जवाब दाखिल कर ब्योरा देने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैदल घर जा रहे प्रवासी श्रमिकों को तुरंत आश्रय स्थलों पर ले जाया जाए और उन्हें भोजन-पानी समेत सभी बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जाएं। अदालत ने कहा कि वह अपने मूल स्थान पर पहुंचने के लिए प्रवासियों की कठिनाइयों से चिंतित है। उसने पंजीकरण, परिवहन और भोजन और पानी के प्रावधान की प्रक्रिया में कई खामियां पाई हैं।
इससे पहले केंद्र की ओर कोर्ट में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि अब तक 91 लाख प्रवासियों को उनके गंत्यव्य स्थान पहुंचा दिया गया है। 80 प्रतिशत प्रवासी मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे इन कामगारों की दयनीय स्थिति पर मंगलवार को केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी कर 28 मई यानी आज जवाब देने के लिए आदेश दिया था। अदालत ने मामले पर सॉलिसिटर जनरल की सहायता भी मांगी थी।
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