नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) एक संपूर्ण पैकेज (Complete package) होता है। कर्मचारियों द्वारा इसके अतिरिक्त लाभ और सुविधा की मांग करना दुर्भाग्यपूर्ण और बेजा है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की पीठ ने अपना फैसला देते हुए कहा, “सेवानिवृत्ति और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति में अंतर है। जो लाभ कार्यकाल पूरा होने पर सेवानिवृत्त लोगों को मिलता है वही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वालों को नहीं मिल सकता।” शीर्ष अदालत ने कहा, “जब कर्मचारी मर्जी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेते हैं तो वे नियोक्ता से संबंध खत्म करते हैं न कि उनका कार्यकाल पूरा होता है। फैसला वे पूरे होशो-हवास में लेते हैं न कि उन पर यह थोपा जाता है। उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के नफे-नुकसान का भलीभांति पता होता है।”
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी आईएफसीआई से स्वैच्छिक सेवानिृवत्ति लेने वाले कर्मचारियों के मामले में की है। सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने दोटूक कहा, “वीआरएस, आर्थिक पैकेज है और पेंशन उसका हिस्सा है।” इसके साथ ही अदालत ने आईएफसीआई के हक में फैसला सुनाते हुए वीआरएस लेने वाले कर्मचारियों को अन्य लाभ देने से इन्कार कर दिया।
दरअसल, भारत सरकार के उपक्रम आईएफसीआई के कुछ कर्मचारियों ने वीआरएस-2008 के तहत स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। इन कर्मचारियों ने बाद में पेंशन में हुए संशोधन के आधार पर अपना दावा ठोका। दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने फरवरी 2017 में कर्मचारियों की याचिका खारिज कर दी। इस पर इन लोगों ने इस आदेश को हाईकोर्ट की खंडपीठ में चुनौती दी जहां जनवरी 2019 में फैसला उनके हक में आया। इस फैसले को आईएफसीआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
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