नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एससी/एसटी एक्ट से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान देश में अभी भी जातिगत भेदभाव जारी रहने पर बेहद तल्ख टिप्पणी। शीर्ष अदालत ने कहा, “आजादी को 70 साल बीत चुके हैं लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में अभी भी जातिगत भेदभाव जारी है और सरकारें उनको सुरक्षा देने में विफल रही हैं। जातिगत भेदभाव अभी भी समाज में जारी है और मैनहोल, नालियों व अन्य स्थानों पर सफाई करने वाले लोग मास्क ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं पहनने के कारण मर रहे हैं।”

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सीवर की सफाई करने वाले व्यक्तियो को सुरक्षा नहीं देने पर सरकारी एजेंसियों पर यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने सरकार की आलोचना की और इसे “सबसे असभ्य और अमानवीय स्थिति” कहा। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यहां सीवर सफाईकर्मी हर रोज मर रहे हैं और उन्हें कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की जा रही है और इसके बावजूद उन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है जो सफाईकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करने में लापरवाही बरतते हैं।” पीठ ने पूछा, “मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए आपने क्या किया है? किसी भी अन्य देश में लोग बिना सुरक्षात्मक यंत्र के मैनहोल में प्रवेश नहीं करते हैं। आपने इसके बारे में क्या किया है?”

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस देश में छूआछूत का अब भी चलन है क्योंकि कोई भी इस तरह की सफाई गतिविधियों में शामिल लोगों के साथ नहीं रहना चाहता है। पीठ ने कहा कि स्थितियों में सुधार किया जाना चाहिए।

ये टिप्पणियां करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, एमआर शाह और बीआर गवई की पीठ ने केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। पुनर्विचार याचिका में केंद्र ने 2018 के फैसले को वापस लेने की मांग की है जिसमें एससी/एसटी अधिनियम के तहत दायर एक शिकायत पर  तत्काल गिरफ्तारी के कठोर प्रावधानों और आरोपियों के लिए कोई अग्रिम जमानत नहीं दी गई थी।

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