नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के हित में एक बड़ा फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी है कि यदि किसी कर्मचारी को अवैध नियुक्ति के कारण हटाया जाता है तो उसे भी छंटनी माना जाएगा। ऐसा कर्मचारी औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25 एफ के तहत “उचित रूप से मुआवजा” पाने का हकदार होगा।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और एमआर शाह की पीठ ने यह फैसला बिहार राज्य अनुसूचित जाति सहकारी विकास लिमटेड की एक अपील को खारिज करते हुए दिया है। पीठ ने कहा कि इस मामले में धारा 2 (ओ ओ) का अपवाद लागू नहीं होगा। धारा 2 (ओ ओ) के अनुसार छंटनी का मतलब कर्मचारी को बर्खास्त करना है जो किसी सजा के रूप में नही है। लेकिन, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, अनुबंध की समाप्ति और खराब स्वास्थ्य के कारण सेवा की समाप्ति छंटनी नहीं होगी। इस मामले में श्रम न्यायालय (Labor court) में संदर्भ दिया गया था कि बिहार एससी निगम के कर्मचारियों की बर्खास्तगी वैध थी या नहीं। क्या उन्हें पुन: बहाल करना चाहिए और मुआवजा देना चाहिए?
श्रम न्यायालय में दलील दी गई कि कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त करना धारा 25 एफ का उल्लंघन हैं क्योंकि उन्होंने साल में 240 दिनों से ज्यादा काम किया है। उनकी सेवाएं समाप्त करना अवैध है और उन्हें सेवा में बहाल कर पूरा पिछला वेतन दिलवाया जाए। श्रम न्यायालय ने अवार्ड में कहा कि चूंकि श्रमिकों ने एक साल लगातार सेवा की है, इसलिए उनकी सेवाएं धारा 25 एफ में दी गई प्रक्रिया के अनुसार ही समाप्त की जा सकती हैं। इसलिए उनकी छंटनी आईडी एक्ट की धारा 25 एफ का उल्लंघन है और यह अवैध है। हालांकि श्रम न्यायालय ने उन्हें पिछले वेतन के साथ सेवा पर बहाल करने को आदेश नहीं दिया लेकिन कहा कि उन्हें तीन वर्ष के बराबर का वेतन और भत्तों का भुगतान किया जाए।
श्रम न्यायालय इस फैसले को बिहार राज्य अनुसूचित जाति सहकारी विकास लिमटेड के प्रबंधन और श्रमिक दोनों ने हाईकोर्ट में चुनैाती दी। हाईकोर्ट की फुल बेंच ने सवाल तैयार किया कि क्या ऐसे श्रमिक जिनकी शुरुआती नियुक्ति ही गलत हो, उन्हें हटाने को छंटनी माना जा सकता है और क्या नियोक्ता को उन्हें इस बिना पर धारा 25 एफ के तहत मुआवजा देने के लिए आदेशित किया जा सकता है कि उन्होंने एक साल लगातार सेवा की है।
हाईकोर्ट ने कहा हम यह नहीं कहते कि कर्मचारियों को हटाना छंटनी थी और वे मुआवजे के हकदार हैं। यदि उनकी शुरुआती नियुक्ति ही अवैध थी तो उन्हें बर्खास्तगी का आदेश देने की जरूरत भी नहीं थी, उन्हें सेवा में बहाल नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आदेश दिया लेकिन कहा कि उनसे (श्रमिकों से) श्रम न्यायालय द्वारा दिया गया मुआवजा वसूल न किया जाए।
मुआवजा वसूली का आदेश न देने को प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उसने कहा कि जब नियुक्ति ही अवैध थी तो धारा 25 एफ कैसे लगाई जा सकती है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी और कहा कि धारा 25 एफ उस मामले में भी लागू होगी जिसमें कर्मचारी की नियुक्ति अवैध/अयोग्य हो।
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