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जंग-ए-बदर पर थी पुलवामा जैसे हमले की साजिश, आतंकियों के निशाने पर थे सीआरपीएफ के 400 जवान

नई दिल्ली।(Pulwama attack part-2 conspiracy foiled) आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में 14 फरवरी 2019 को किए गए पुलवामा हमले जैसी जो साजिश रची थी, वह पहले से भी बड़ी और घातक थी। सतर्क सुरक्षा बलों ने इस साजिश को नाकाम कर विस्फोटकों से भरी एक कार को पकड़ लिया अन्यथा सैकड़ों जवान मारे जाते। दरअसल, इस हमले की जो साजिश रची गई थी, उसके अनुसार सुरक्षा बलों के 20 वाहन निशाने पर थे जिन पर सीआरपीएफ के करीब 400 जवान होते। पुलवामा हमले की तरह इस मामले की जांच भी एनआईए को सौंप दी गई है।

साजिश में शामिल थे फौजी भाई और आदिल

जम्मू-कश्मीर पुलिस के आईजी विजय कुमार ने बताया कि उन्हें पहले से ऐसे हमले के इनपुट मिल रहे थे और वे पूरी तरह तैयार थे। बुधवार को इनुपट के बाद उन्होंने जगह-जगह पुलिस नाके लगाए। सेंट्रो कार जिसका इनपुट पुलिस पर था, उसे नाके पर रोकने को कहा गया। नहीं रुकने पर आइनगुंड में फायरिंग हुई, फिर आतंकी कार छोड़कर भाग गए। सुबह बम स्कॉड आया तो गाड़ी में आईईडी मिला। विजय कुमार के मुताबिक, इस साजिश में जैश का पाकिस्तानी कमांडर फौजी भाई शामिल है। उसकी उम्र करीब 45 साल बताई जाती है। आदिल नाम का कोई आतंकी भी इसमें शामिल था जो हिजबुल और जैश दोनों के लिए काम करता है। आदिल डार नाम का ही शख्स पुलवामा आतंकी हमले में शामिल था।

पहले इस हमले को जंग-ए-बदर के दिन अंजाम देने की तैयारी थी लेकिन तब से अब तक पुलिस ने अपनी तरफ से कोई सुरक्षा चूक नहीं होने दी जिसकी वजह से आतंकवादी अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाए। पुलिस ने इस हमले में तीन आतंकियों के शामिल होने का दावा किया है।

पुलिस को शक है कि जैश के निशाने पर सीआरपीएफ के 400 जवान थे। दरअसल, गुरुवार को सीआरपीएफ की 20 गाड़ियों का काफिला श्रीनगर से जम्मू पहुंचा है। पता चला है कि काफिला सुबह 7 बजे बक्शी स्टेडियम कैंप से जम्मू के लिए निकलना था। इस काफिले में सभी रैंक के अधिकारी और जवान शामिल थे।

जंग-ए-बदर क्या है

रमजान के 17वें रोजे को जंग-ए-बदर के नाम से जाना जाता है। इसी दिन इस्लाम के लिए पहली जंग लड़ी गई थी। जंग-ए-बदर 624 ईस्वी में मदीना में लड़ी गई थी। कहा जाता है कि इस लड़ाई में एक तरफ मक्का के कुरैश कबिले के तकरीबन 1000 बड़े-बड़े योद्धा शामिल और दूसरी तरफ थे पैगम्बर और उनके 313 साथी। इनमें से ज्यादातर ने पहले कभी जंग नहीं लड़ी थी। अरब क्षेत्र में यह लड़ाई बुराई के खिलाफ हुई बताई जाती है लेकिन जम्मू-कश्मीर में इसी दिन आतंकवादी कई बार हमलों को अंजाम देने के लिए चुन चुके हैं। कश्मीर में भी कथित “आजादी” के नाम पर हो रहे आतंकी हमले भी इसी का हिस्सा हैं। आतंकी वहां इसी दिन को इसलिए भी चुन रहे क्योंकि जंग “आजादी”  की न होकर “इस्लाम” की होती जा रही है। इस बात को मजबूत करता एक तथ्य भी है। दरअसल, 14 फरवरी 2019 को हुए  पुलवामा आतंकी हमले में सीआरपीएफ  के 44 जवानों को शहीद करने वाला जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी आदिल अहमद डार ने अपने आखिरी संदेश में यह बात साफ तौर पर कही थी कि उसकी जंग कश्‍मीर की आजादी के लिए नहीं, बल्कि इस्‍लाम के लिए है। जं

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