बरेली। वृक्ष सिर्फ दवा और फल ही नहीं देते। क्या आप जानते है कि कई वृक्ष इतने विशेष है जो आपका भविष्य भी बदल सकते हैं। थोड़े से विधान से ये आपके जीवन में खुशहाली ला सकते है। हमारे जीवन के नकारात्मकता को मिटा सकते। ऐसा ही एक वृक्ष है अपना ‘पीपल‘। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं।
मूलत ब्रहृमा रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिण। अग्रतरू शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
अर्थात इसके मूल में ब्रहृम, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास होता है। पुराणों के अनुसार, पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है यह वृक्ष पूजनीय माना गया है। इस वृक्ष में जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते हैं। पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं।
जानें विधान-
- प्रतिदिन मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रताए दुख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन -पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।
- शनिवार की को पीपल वृक्ष की पूजा और सात परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
- शनिवार को अनुराधा नक्षत्र हो तो पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है।
- श्रवण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से सभी तरह के संकट से मुक्ति मिल जाती है।
- पीपल के वृक्ष में गुड, दूध मिश्रित जल व सरसों के तेल का दीपक अर्पित करें तो कभी भी आर्थिक रूप से परेशान नहीं होंगे। सम्पनता के लिए पीपल के पेड़ में जल अवश्य चढ़ाएं।
वैज्ञानिक महत्ता
मनुष्य की जड़ें भी मस्तिष्क में ऊपर हैं। नीचे शाखाएं हैं। मस्तिष्क केन्द्र से ही नाड़ी तंत्र बोध तंत्र का विकास है। ऋग्वेद की देवशक्तियां भी ऊपर हैं, ऋषि कहते है ‘ऋचोअक्षरे परम व्योमन’ ऋचा–मन्त्र परमव्योम से आते हैं। यहां दिव्य-शक्तियां रहती है। जो यह बात नहीं जानते, मन्त्रों ऋचाओं से वे क्या पाएंगे। शिव विषपायी हैं। लेकिन ‘महामृत्युंजय’ हैं। वशिष्ठ के देखे रचे ऋग्वेद के ‘त्रयंबकं यजामहे’ का नाम महामृत्युंजय पड़ा। इस मन्त्र में मृर्त्योमुक्षीय मा अमृतात- मृत्युबंधन से मुक्ति और अमृत्व की कामना है। पीपल देव भी कार्बन डाईआक्साइड नामक विष पीते हैं और आक्सीजन नामक अमृत देते है। शिव और पीपल का स्वभाव एक है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार वृक्ष शिवरूप है। यजुर्वेद में रुद्रअसंख्य है। वृक्ष वनस्पतियां भी असंख्य है। यजुर्वेद का 16वां अध्याय शिव आराधना है। यहां शिव वृक्षों और वनस्पतियों के अधिष्ठाता हैं। सभी वनस्पतियां विषपायी हैं- कार्बन डाईआक्साइड पीती हैं, आक्सीजन देती हैं। लेकिन पीपल की बात ही दूसरी है, यह 24 घंटे आक्सीजन देता है। ग्लोबल वार्मिंग से विश्व बेचैन है। ओज़ोन परत नष्ट हो जाने की आशंकाएँ हैं। पीपल अब पूज्य देवता नहीं रहे। ऋग्वेद के ऋषियों ने हज़ारों वर्ष पहले ‘वृक्षों, वनस्पतियों को संरक्षक देव बताया था कि इनसे कल्याण है, इनका त्याग विनाश है।
गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का गुण है और ऊर्ध्वाकर्षण देवताओं का। पृथ्वी सभी वस्तुओं को नीचे की ओर खींचती है, यही गुरुत्वाकर्षण है। देवता सभी वस्तुओं को ऊपर की ओर खींचते है, इसका प्रतिफल प्रसाद है। संसारी संलिप्तता ‘विषाद’ है, देव अनुकम्पा ‘प्रसाद’ है। प्रसाद ऊपर खींचता है, विषाद नीचे गिराता है। पीपल सहित सभी वृक्षों में प्रसाद गुण है। सभी वृक्ष ऊपर उठते हैं, आकाश चूमने को लालायित रहते हैं। वे ऊर्ध्व अभीप्सु हैं। इसी अभीप्सा में वे आक्सीजन देते हैं, फूल देते हैं और फल देते हैं। आक्सीजन, फूल और फल प्रसाद हैं। लेकिन नीचे हैं, इनका स्रोत (जड़ें) ऊपर हैं। पीपल का पेड़ दर्शन में है, विश्व के प्राचीनतम ज्ञानकोष ऋग्वेद में देव रूप में है, उसके बाद यजुर्वेद में है, यज्ञ में है और देव रूप है। फिर अथर्ववेद में वह देवों का निवास है। वह उपनिषद साहित्य में है। वह बौद्ध पंथ अनुयायियों की आस्था है। वह हड़प्पा सभ्यता में है। वह वाल्मीकि रामायण में है। वह महाभारत में है, गीता में है, प्राक् ऋग्वैदिक काल अनादि है, ऋग्वैदिक काल और हड़प्पा इत्यादि है। वह आधुनिक विज्ञान में विश्व का अनूठा वृक्ष है। वह भव्य है, लोकमंगलकारी है, अमंगलहारी है। वह दिव्य है, उपास्य है, संरक्षक है, संरक्षण है। वह उपास्य है, नमस्कार के योग्य है और आराध्य देव है। वह सृष्टि की अनूठी सर्जना है। लोकमन ने इसीलिए उसे देवता जाना और पूजा भी है।
पीपल के औषधीय गुण
- भारत में उपलब्ध विविध वृक्षों में जितना अधिक धार्मिक एवं औषधीय महत्त्व पीपल का है, अन्य किसी वृक्ष का नहीं है। यही नहीं पीपल निरंतर दूषित गैसों का विषपान करता रहता है। ठीक वैसे ही जैसे शिव ने विषपान किया था।
- पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी वृक्षों में पीपल को प्राणवायु यानी ऑक्सीजन को शुद्ध करने वाले वृक्षों में सर्वोत्तम माना जा सकता है, पीपल ही एक ऐसा वृक्ष है, जो चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देता है। जबकि अन्य वृक्ष रात को कार्बन-डाइ-आक्साइड या नाइट्रोजन छोड़ते है। इस वृक्ष का सबसे बड़ा उपयोग पर्यावरण प्रदूषणको दूर करने में किया जा सकता है, क्योंकि यह प्राणवायु प्रदान कर वायुमण्डल को शुद्ध करता है और इसी गुणवत्ता के कारण भारतीय शास्त्रों ने इस वृक्ष को सम्मान दिया। पीपल के जितने ज़्यादा वृक्ष होंगे, वायुमण्डल उतना ही ज़्यादा शुद्ध होगा। पीपल के नीचे ली हुई श्वास ताजगी प्रदान करती है, बुद्धि तेज करती है।
- पीपल के नीचे रहने वाले लोग बुद्धिमान, निरोगी और दीर्घायु होते हैं। गांवों में प्रत्येक घर तथा मन्दिर के पास आपको पीपल या नीम का वृक्ष मिल जायेगा। पीपल पर्यावरण को शुद्ध करता है तथा नीम हमारा गृह चिकित्सक है। नीम से हमारी कितनी ही व्याधियां दूर हो जाती है। आज पर्यावरण को शुद्ध रखना हमारी प्राथमिकता है।
- सभी मौसम में पीपल का औषधि रूप समान रहता है। बच्चे से लेकर वृद्धों तक यह सभी के लिए लाभदायक है। आयुर्वेद में भी पीपल का कई औषधि के रूप में प्रयोग होता है। श्वास, तपेदिक, रक्त-पित्त विषदाह भूख बढ़ाने के लिए यह वरदान है। शास्त्रों में भी पीपल को बहुपयोगी माना गया है तथा उसको धार्मिक महत्त्व बनाकर उसको काटने का निषेध किया गया हमारे पूर्वजों की हमारे ऊपर यह विशेष कृपा है। इस प्रकार पीपल अपने धार्मिक औषधि एवं सामाजिक गुणों के कारण सभी के लिए वंदनीय है। पीपल न केवल एक पूजनीय वृक्ष है बल्कि इसके वृक्ष खाल, तना, पत्ते तथा बीज आयुर्वेद की अनुपम देन भी है। पीपल को निघन्टु शास्त्र ने ऐसी अजर अमर बूटी का नाम दिया है, जिसके सेवन से वात रोग, कफ रोग और पित्त रोग नष्ट होते हैं। संभवतः इतिज मासिक या गर्भाशय संबंधी स्त्री जनित रोगों में पीपल का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। पीपल की लंबी आयु के कारण ही बहुधा इसमें दाढ़ी निकल आती हैं। इस दाढ़ी का आयुर्वेद में शिशु माताजन्य रोग में अद्भुत प्रयोग होता है। पीपल की जड़, शाखाएं, पत्ते, फल, छाल व पत्ते तोड़ने पर डंठल से उत्पन्न स्राव या तने व शाखा से रिसते गोंद की बहुमूल्य उपयोगिता सिद्ध हुई है।
- पीपल रोगों का विनाश करता है। पीपल के औषधीय गुण का उल्लेख सुश्रुत संहिता, चरक संहिता में किया गया है। पीपल फेफड़ों के रोग जैसे तपेदिक, अस्थमा, खांसी तथा कुष्ठ, प्लेग, भगन्दर आदि रोगों पर बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है। इसके अलावा रतौंधि, मलेरिया ज्वर, कान दर्द या बहरापन, खांसी, बांझपन, महिने की गड़बड़ी, सर्दी सरदर्द सभी में पीपल औषधि के रूप में प्रयोग होता है।
- पीपल का वृक्ष रक्तपित्त और कफ के रोगों को दूर करने वाला होता है। पीपल की छाया बहुत शीतल और सुखद होती है। इसके पत्ते कोमल, चिकने और हरे रंग के होते हैं जो आंखों को बहुत सुहावने लगते हैं।
- औषधि के रूप में इसके पत्र, त्वक्, फल, बीज और दुग्ध व लकड़ी आदि इसका प्रत्येक अंग और अंश हितकारी लाभकारी और गुणकारी होता है। सांप और बिच्छु का विष उतारने में पीपल की लकडिय़ों का प्रयोग होता है।
- पीपल को सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय माना जा सकता है। किसी भी रोग में पीपल के उपयोग से पूर्व किसी आयुर्वेदाचार्य या विशेषज्ञ से सलाह के बाद ही इसका उपयोग करें।
- पीपल वृक्ष के पके हुए फल हृदय रोगों को शीतलता और शांति देने वाले होते हैं। इसके साथ ही पित्त, रक्त और कफ के दोष को दूर करने वाले गुण भी इनमें निहित हैं। दाह, वमन, शोथ, अरूचि आदि रोगों में यह रामबाण है। पीपल का फल पाचक, आनुलोमिक, संकोच, विकास-प्रतिबंधक और रक्त शोषक है। पीपल के सूखे फल दमे के रोग को दूर करने में काफ़ी लाभकारी साबित हुआ है। महिलाओं में बांझपन को दूर करने और सन्तानोत्पत्ति में इसके फलों का सफल प्रयोग किया गया है।
- पीपल का दूध (क्षीर) अति शीघ्र रक्तशोधक, वेदनानाशक, शोषहर होता है। दूध का रंग सफ़ेद होता है। पीपल का दूध आंखों के अनेक रोगों को दूर करता है। पीपल के पत्ते या टहनी तोड़ने से जो दूध निकलता है उसे थोड़ी मात्रा में प्रतिदिन सलाई से लगाने पर आँखों के रोग जैसे पानी आना, मल बहना, फोला, आंखों में दर्द और आंखों की लाली आदि रोगों में आराम मिलता है।
- इसकी छाल का रस या दूध लगाने से पैरों की बिवाई ठीक हो जाती है।
- पीपल की छाल स्तम्भक, रक्त संग्राहक और पौष्टिक होती है। सुजाक में पीपल की छाल का उपयोग किया जाता है। इसके छाल के अंदर फोड़ों को पकाने के तत्व भी होते हैं। इसकी छाल के शीत निर्यास का इस्तेमाल गीली खुजली को दूर करने में भी किया जाता है। पीपल की छाल के चूर्ण का मरहम एक शोषक वस्तु के समान सूजन पर लगाया जाता है। इसकी ताजा जलाई हुई छाल की राख को पानी में घोलकर और उसके निथरे हुए जल को पिलाने से भयंकर हिचकी भी रूक जाती है। इसके छाल का चूर्ण भगन्दर रोग को भगाने में किया जाता है।
- श्रीलंका में तो इसके छाल का रस दांत मसूड़ों की दर्द को दूर करने में कुल्ले के रूप में किया जाता है। यूनानी मत में पीपल की छाल को कब्ज करने वाली माना गया है। इसकी ताजा छाल को जल में भिगोकर कमर में बांघने से ताकत आती है।
- यूनानी चिकित्सा में इसके छाल को वीर्य वर्धक माना गया है। इसका अर्क ख़ून को साफ़ करता है। इसकी छाल का क्वाथ पीने से पेशाब की जलन, पुराना सुजाक और हडडी की जलन मिटने की बात कही गयी है।
- पीपल की अन्तरछाल (छाल के अन्दर का भाग) निकालकर सुखा लें और कूट-पीसकर खूब महीन चूर्ण कर लें, यह चूर्ण दमा रोगी को देने से दमा में आराम मिलता है। पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर उसमें यह चूर्ण बुरककर खीर को 4-5 घंटे चन्द्रमा की किरणों में रखें, इससे खीर में ऐसे औषधीय तत्व आ जाते हैं कि दमा रोगी को बहुत आराम मिलता है। इसके सेवन का समय पूर्णिमा की रात को माना जाता है।
- पीपल की छाल को जलाकर राख कर लें, इसे एक कप पानी में घोलकर रख दें, जब राख नीचे बैठ जाए, तब पानी नितारकर पिलाने से हिचकी आना बंद हो जाता है।
- मसूड़ों की सूजन दूर करने के लिए इसकी छाल के काढ़े से कुल्ले करें।
- पीपल के पत्ते आनुलोमिक होते हैं। पीपल के पत्तों को गर्म करके सूजन पर बाधने से कुछ ही दिनों में सूजन उतर आता है। खांसी के रोग में पीपल के पत्तों को छाया में सुखाकर कूट- छानकर समान भागकर मिसरी मिला लें तथा कीकर का गोंद मिलाकर चने के आकार समान गोली बना ले। दिनभर में दो से तीन गोलियां कुछ दिनों तक चूसें, खांसी में आराम मिलेगा।
- पीपल की ताजी हरी पत्तियों को निचोड़कर उसका रस कान में डालने से कान दर्द दूर होता है। कुछ समय तक इसके नियमित सेवन से कान का बहरापन भी जाता रहता है।
- पीपल के सूखे पत्ते को खूब कूटें। जब पाउडर सा बन जाए, तब उसे कपड़े से छान लें। लगभग 5 ग्राम चूर्ण को दो चम्मच मधु मिलाकर एक महीना सुबह चाटने से दमा और खांसी में लाभ होता है।
- सर्दी के सिरदर्द के लिए सिर्फ़ पीपल की दो-चार कोमल पत्तियों को चूसें। दो-तीन बार ऎसा करने से सर्दी जुकाम में लाभ होना संभव है।
- पीपल के 4-5 कोमल, नरम पत्ते खूब चबा-चबाकर खाने से, इसकी छाल का काढ़ा बनाकर आधा कप मात्रा में पीने से दाद, खाज, खुजली आदि चर्म रोगों में आराम होता है। इसके पत्तों को जलाकर राख कर लें, यह राख घावों पर बुरकने से घाव ठीक हो जाते हैं।
- पीपल की टहनियों में से दातुन बना लें। प्रतिदिन पीपल का दातुन करने से लाभ होता है। यदि आप पित्त प्रकृति के हैं तो यह दातुन आपको विशेषकर लाभकारी होगा। पीपल के दातुन से दांतों के रोगों जैसे दांतों में कीड़ा लगना, मसूड़ों में सूजन, पीप या ख़ून निकलना, दांतों के पीलापन, दांत हिलना आदि में लाभ देता है। पीपल का दातुन मुंह की दुर्गंध को दूर करता है और साथ ही साथ आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
- पीपल की टहनी का दातुन कई दिनों तक करने से तथा उसको चूसने से मलेरिया बुखार उतर जाता है।
- पीलिया के रोगी को पीपल की नर्म टहनी (जो की पेंसिल जैसी पतली हो) के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर माला बना लें। यह माला पीलिया रोग के रोगी को एक सप्ताह धारण करवाने से पीलिया नष्ट हो जाता है।
- बहुत से लोगों को रात में दिखाई नहीं पड़ता। शाम का झुट-पुट फैलते ही आंखों के आगे अंधियारा सा छा जाता है। इसकी सहज औषधि है पीपल। पीपल की लकड़ी का एक टुकड़ा लेकर गोमूत्र के साथ उसे शिला पर पीसें। इसका अंजन दो-चार दिन आंखों में लगाने से रतौंधी में लाभ होता है। उपचार के लिए इसके उपयोग से पूर्व किसी विशेषज्ञ की सलाह ज़रूर लें।