नयी दिल्ली : रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का असर भारत में शेयर मार्कट और सर्राफा बाजार पर तो दिखने ही लगा है, इस आग की लपटें जल्द ही हमारी-आपकी जेबों को और झुलसाने वाली हैं। तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक की “दादागीरी” के चलते पहले से ही उबाल मार रहे कच्चे तेल के दाम अब रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गये हैं। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होते ही कच्चे तेल (brent crude) के दाम 8 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गये हैं। इस समाचार को लिखे जाने तक कच्चे तेल के दाम 103 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच चुके हैं। इससे पहले 2014 में कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर के पार गये थे। इसके अलावा प्राकृतिक गैस के दाम भी उछाल मारने लगे हैं। इसके चलते आने वाले दिनों में रसोई गैस (LPG) और सीएनजी (CNG) के दाम भी 10 से 15 रुपये तक बढ़ सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव के बाद आम आदमी को महंगाई का एक बड़ा झटका लग सकता है। विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आने हैं, इसके बाद पेट्रोल-डीजल महंगे हो सकते हैं क्योंकि आमतौर देखा गया है कि तेल कंपनियां चुनाव के दौरान पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाती हैं।
टेक्सास की ऑयल कंपनी पायनियर नेचुरल रिसोर्सेज के स्कॉट शेफील्ड ने एक दिन पहले ही कहा, “अगर पुतिन हमला करते हैं, तो कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर से 120 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं लेकिन अगर बाइडेन ईरान पर से प्रतिबंध हटाते हैं तो इनमें 10 डॉलर की गिरावट होगी। फिलहाल मार्केट में जितनी मांग है उतनी आपूर्ति नहीं है, इस वजह से कच्चा तेल 100 डॉलर के पार निकल गया है।” गौरतलब है कि रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, ऐसे में युद्ध की स्थिति में सप्लाई लाइन बिगड़ने लगी है। इसके चलते तेल की कीमतें आसमान छूने लगी हैं।
आईआईएफएल सिक्योरिटीज के वाइस प्रेसिडेंट (कमोडिटी एंड करेंसी) अनुज गुप्ता कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल पार कर गई हैं। वहीं भारत की पेट्रोलियम कंपनियों ने 3 नवंबर 2021 से पेट्रोल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया है जबकि तब से लेकर अब तक कच्चा तेल 20 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा महंगा हो गया है। आगे भी इसमें तेजी जारी रह सकती है। ऐसे में आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 15 से 20 रुपये तक की बढ़ोतरी हो सकती है।
जून 2010 तक सरकार पेट्रोल की कीमत निर्धारित करती थी और हर 15 दिन में इसे बदला जाता था। 26 जून 2010 के बाद सरकार ने पेट्रोल की कीमतों का निर्धारण पेट्रोलियम कंपनियों के ऊपर छोड़ दिया। इसी तरह अक्टूबर 2014 तक डीजल की कीमत भी सरकार निर्धारित करती थी लेकिन 19 अक्टूबर 2014 से सरकार ने यह काम भी ऑयल कंपनियों को सौंप दिया। कंपनियां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, टैक्स, पेट्रोल-डीजल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च और बाकी कई चीजों को ध्यान में रखते हुए रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करती हैं।
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