अड्डेबाज गजेन्द्र — जीवन-शैली का डिजायनर

रॉल्फ लॉरेन ने कड़ा व्यावसायिक संषर्ष किया जिसकी बदौलत आज वे न केवल अमेरिका बल्कि दुनिया के शीर्षस्थ फैशन डिजायनर माने जाते हैं।

पोलो, एक ऐसा फैशन ब्रांड जो बड़ी खामोशी से लांच हुआ और कुछ ही वर्षों में पूरी दुनिया में छा गया। इस ब्रांड को तो फैशन की जानकारी और समझ रखने वाले ज्यादातर लोग जानते हैं पर इसकी सफलता के पीछे जिस व्यक्ति की परिकल्पना थी, उसका नाम हमारे देश में गिनेचुने लोग ही जानते हैं, हालांकि अमेरिका से लेकर यूरोप तक वे एक बड़ा नाम हैं और कभी स्वयं तो कभी उनके बनाए डिजायनर कपड़े पहने मॉडल अखबारों के तीसरे पन्ने पर छाये रहते हैं। जितने मुंह उतने विशेषण। कोई उन्हें ‘सपनों का सौदागर’ कहता है तो कोई ‘जीवन शैली का सौदागर’लेकिन, फैशन की दुनिया से सीधे ताल्लुक रखने वाला तबका पूरे अदब के साथ उन्हें ‘जीवन शैली का डिजायनर’ कहता है। फैशन की दुनिया के वे एकछत्र सम्राट हैं, लेकिन स्वयं के बारे में उनका अपना बयान तो सुनिये, ‘मैं कोई फैशन पर्सन नहीं हूं लेकिन मेरे पास सेंस ऑफ स्टाइल जरूर है। मैं फैशन के प्रति नहीं, कपड़ों के प्रति संवेदना रखता हूं।’

पहचाना आपने? शायद अब भी नहीं। ये हैं रॉल्फ लॉरेन। सोफिया लॉरेन से लेकर हिलेरी क्लिंटन जैसी हस्तियों को उन्हीं की जादुई कल्पना ने नया लुक दिया। 14 अक्टूबर 1939 को अमेरिका के न्यूयार्क में जन्मे लॉरेन एक विस्थापित रूसी पेंटर के पुत्र हैं। बचपन में तंगहाली उनकी सबसे बड़ी हमजोली रही। लेकिन, लोगों के सपनों और जीवन—शैली,  उससे भी बढ़कर समय की नब्ज पहचानने वाले लॉरेन ने कड़ा व्यावसायिक संषर्ष किया जिसकी बदौलत आज वे न केवल अमेरिका बल्कि दुनिया के शीर्षस्थ फैशन डिजायनर माने जाते हैं।

1971 में कैलीफोर्निया की बेवर्ली हिल्स में अपना पहला रिटेल आउटलेट खोलने वाले लॉरेन की कुल नेटवर्थ 2018 में 7.2 बिलियन डॉलर आंकी गई। उन्होंने सर्वाधिक काम डेनिम पर किया है और उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया 1968 में अस्तितव में आये ‘पोलो’ के लेबल वाली शर्ट और बेसबॉल कैप ने। खास बात यह है कि इसमें उन्होंने खास से लेकर आम तक हर शख्श की पसंद और जेब का ध्यान रखा। सभी वर्गों का ख्याल रखने की इसी सहज प्रवृत्ति ने उन्हें ऐसी लोकप्रियता दी कि उनकी तुलना चेयरमैन माओ से की जाने लगी। कई लोग तो उनके नाम के आगे चेयरमौन जोड़ देते हैं, यानी ‘चेयरमैन रॉल्फ लॉरेन’। फिलहाल तो वे अपने पोलो, लॉरेन, रॉल्फ, चैम्प आदि लेबलों के साथ सफलता के विमान पर सवार हैं। 1967 में सिल्क की टाई बेचकर अपना व्यावसायिक जीवन शुरू करने वाले लॉरेन से इस सफलता का रहस्य पूछो तो वे हौले से केवल पांच शब्द कहते हैं- विजन (दृष्टि), कल्पना, लगन, मेहनत और जुनून। सफलता का इससे बड़ा कोई अन्य मंत्र हो भी नहीं सकता।

-गजेन्द्र त्रिपाठी   

(अड्डेबाज ब्लॉग से साभार)                                                                                                                                                                                       

gajendra tripathi

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