BareillyLive: ऐसा कहा जाता है कि पत्रकारिता का एक उदय उसी दिन से हुआ जिस दिन से मनुष्य ने कागज का आविष्कार किया। वैसे कागज का आविष्कार चीन द्वारा होना माना जाता है वहीं से यह एशिया तथा यूरोप के अन्य देशों में पहुंचा। इसी प्रकार चीन देश में समाचार-पत्र का सबसे पहला प्रकाशन हुआ। इस पत्र का नाम उस समय पीपिंग गजट रखा गया था जो कुछ काल पश्चात शी-तो के नाम से विख्यात हुआ। इस समाचार-पत्र का प्रकाशन अपने शुरू होने के काल से लगभग 500 वर्षो तक चलता रहा। परन्तु 1912 में मा-चूं वंश के पतन के साथ ही यह पत्र भी भूमिगत हो गया। धूर्त अंग्रेजों की पूर्वाग्रह की नीति को छोड़ दिया जाये तो यह निर्विवाद सत्य है कि यह संसार का सबसे पहला तथा प्राचीन समाचारपत्र था। कुछ विद्वानों का कहना है कि भाषा के विकास के साथ ही समाचारों संवादों, कथनों, कहानियों, आख्यानों, मनोभावों का विकास हो गया था लेकिन उसको विकसित रूप उसी समय मिला जब मनुष्य को समाचार किसी विशेष स्थान पर प्रकट करने या लिखने का अवसर प्राप्त हुआ। भाषा को लिखने का आविष्कार मनुष्य के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ और उसी दिन से मनुष्य के विचारों में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। इसके बाद जब मुद्रण कला ने जन्म लिया तो समाचारपत्रों के क्षेत्र में दुंदभी बज उठी। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीनकाल में शिलालेखों द्वारा या मुनादी के द्वारा लोगों तक समाचार पहुंचाये जाते थे। राजकीय घोषणाओं के लिए भी यही क्रिया अपनाई जाती थी।

मौर्यकाल में सम्राट अशोक महान ने अपनी धर्म आख्याओं को शिलालेखों द्वारा खुदवाकर जनता तक पहुंचाया। अशोक महान के कुछ शिलालेख तथा स्तम्भ जो आततायी मुसलमान आक्रमण कारियों से बच गये थे, आज भी हमारे सामने मौजूद हैं। मुगल शासकों, छत्रपति शिवाजी और नाना फड़नवीस के दरबारों में वाक्यानवीस रहते थे। राजपूत, सिख तथा मराठा दरबारों में भी समाचार लेखक थे। लेकिन ये समाचार संकलन एवं लेखन करते थे, वह केवल शासन के उपयोग के लिए होता था। इसकी कोई नियतकालिकता भी नहीं थी। सन् 1550 ई.में पुर्तगाली मिशनरी ने भारत में प्रथम प्रेस लगाया। परन्तु ऐसा कहा जाता है कि भारत में आधुनिक पत्रकारिता का आरंभ अंग्रेजी भाषा के माध्यम से हुआ। विलियम बोल्टस नाम का कूटनीति अंग्रेज को भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में पहला पत्रकार होने का श्रेय दिया जाता है। बोल्टस लिजवन का निवासी था और वहां भूकम्प आने के कारण भारत में आकर बस गया था। उसने भारतीयों से संपर्क स्थापित करने के लिए बंगाली भाषा सीखी। बंगाल कौंसिल के दो सदस्यों की सहायता से बोल्टस ने छल कपट तथा उसके प्रचलित सभी प्रकार के हथकण्डों को काम में लाकर पर्याप्त धनोपार्जन किया। ईस्ट इण्डिया कंपनी के साथ मतभेद हो जाने के कारण इस चालाक अंग्रेज ने 1767 में कलकत्ता के कौंसिल हाल में कुछ थानों पर नोटिस लगवाये। इसे भारत में पत्रकारिता की शुरूआत माना जा सकता है।

तत्पश्चात 26 जनवरी 1750 को जेम्स ऑगस्ट हिकी ने हिकीज बंगाल गजट नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन भारतीय पत्रकारिता की नींव रखी। परन्तु भारतीय भाषाओं का सर्वप्रथम पत्र ‘दिग्दर्शान’ ‘‘मासिक’’ था। जो 7 अपै्रल 1818 ई. को श्रीराम वैप्टिस्ट मिशनरी द्वारा प्रकाशित किया गया था। इसके संपादक जॉन क्लार्क मार्शमैन नामक अंग्रेज थे जो वेल्स के रहने वाले थे। धीरे-धीरे पत्रकारिता के क्षेत्र में वृक्षों से सूर्य ने झांकना शुरू किया और ‘‘उदन्त मार्तण्ड’’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया गया। यह हिन्दी का पहला सप्रमाण पत्र था जिसे पं. युगल किशोर शुक्ल ने मुद्रित तथा प्रकाशित किया था। कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले इस समाचार पत्र का नाम वास्तव में बहुत सोच समझकर रखा गया था क्योंकि उदन्त मार्तण्ड का अर्थ समाचार सूर्य से लगाया जाता है। वह 30 मई 1826 को कलकत्ता के अमड़ताला में मकान संख्या 37 से प्रकाशित हुआ था। कुछ समय बाद इसका प्रकाशन प्रति मंगलवार को किया जाने लगा। इसका वार्षिक मूल्य दो रूपये मात्र था। इस पत्र में देशी-विदेशी समाचार, सरकारी सूचनायें, कलकत्ता बाजार के भाव, चुटकुला आदि प्रकाशित किये जाते थे।

जनवरी सन् 1845 में वाराणसी से पहला हिन्दी पत्र साप्ताहिक बनारस अखबार का प्रकाशन हुआ। यह किसी भी हिन्दी प्रदेश से प्रकाशित होने वाला प्रथम पत्र था। इसके प्रकाशक राजा शिव प्रसाद सितारे हिंद थे। हिन्दी का सर्वप्रथम दैनिक समाचार सुधावर्षण पत्र है जो 1845 ई. में बाबू श्याम सेन के संपादकत्व में प्रकाशित हुआ था। इसके उपरांत सन् 1885 में कालांकार से हिंदुस्तान दैनिक प्रकाशन हुआ। यह हिन्दी भाषा का दूसरा पत्र था। इस को राजा रामपाल सिंह ने बड़े मनोयोग तथा लगन से प्रकाशित किया था। इसके संपादन का श्रेय मदन मोहन मालवीय को भी है क्योंकि उन्होंने तीन वर्ष तक अपने कर कमलों से इसके कलेवर कोे पवित्र किया था। हिन्दुस्तान ने देवनागरी तथा भारत के सांस्कृतिक मूल्यों की बहुत रक्षा की है। मालवीय जी के संरक्षण में इस समाचार पत्र ने आधुनिक पत्रकारिता की परम्पराओं को जीवित किया। सन् 1860 में कलकत्ता में हिन्दी बंगवासी नाम से एक समाचार पत्र निकाला गया जिसका संपादन अमृतलाल चक्रवर्ती ने किया था। यह पत्र लगभग 43 वर्ष तक प्रकाशित होता रहा। इसका दैनिक रूप में भी प्रकाशित किया जाता था। 19 वीं शताब्दी के अंतिम तीन दशकों में पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि में कुछ प्रभावशाली पत्रों का प्रकाशन हुआ। 20 वीं शताब्दी में भारत मित्र कलकत्ता से प्रकाशित हुआ, जिसने हिन्दी जगत को बहुत से लेखक दिये इसके बाद प्रयाग से स्वनाम धन्य पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती नामक पत्रिका का संपादन किया।

19वीं शताब्दी के अंत तक केवल दो दैनिक के प्रकाशित होने के प्रमाण मिलते हैं- समाचार सुधावर्षण ;1857द्ध हिन्दुस्तान ;1885द्ध। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में बहुत से समाचार पत्र प्रकाशित हुए जैसे विश्वमित्र, विजय, आज, नवभारत, नवज्योति, आर्य विश्वबंधु, नवजीवन जागरण आदि इनमें से कुछ समाचार पत्र अधिक समय जीवित नहीं रह सके। स्वतंत्रता के उपरांत हिंदी पत्रकारिता का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया। प्रायः भारत के हरेक राज्य से समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं का प्रकाशन होने लगा। बरेली में 40 वर्ष पूर्व भारतीय पत्रकारिता संस्थान की स्थापना भी पत्रकारिता दिवस को 30 मई, 1983 को की गई थी। तभी से अब तक 40 वर्षांे से भारतीय पत्रकारिता संस्थान अपने वार्षिकोत्सव में देश के नामचीन पत्रकारों को सम्मानित कर चुका है। इस 30 मई को भी दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार मनोज वर्मा और लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अनिल के. अंकुर को सम्मानित किया जा रहा है।

लेखक

सुरेन्द्र बीनू सिन्हा

326, कहरवान, बिहारीपुर, बरेली। मो. 9412067488

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