भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा। आज इस फिल्म के 93 साल हो गए। 14 मार्च 1931 को ये फिल्म रिलीज़ हुई थी। आलम आरा देश की पहली बोलती फिल्म है ये बात आप जानते ही होंगे। लेकिन इस फिल्म की कहानी क्या थी? चूंकि ये फिल्म अब कहीं भी उपलब्ध नहीं है तो बहुत से लोगों को इसकी कहानी नहीं पता है। दुखद बात ये है कि इस फिल्म का कोई ग्रामोफोन रिकॉर्ड भी नहीं बचा। चलिए मैं संक्षिप्त में इसकी कहानी बताने का प्रयास करता हूं।
आलमआरा कहानी है कुमारपुर के बादशाह की। बादशाह की दो पत्नियां हैं। नवबहार और दिलबहार। नवबहार पहली पत्नी है और दिलबहार दूसरी। दोनों रानियां बेऔलाद हैं। और इस वजह से राजा भी काफी दुखी रहता है। एक दिन एक फकीर आता है और वो भविष्यवाणी करता है कि नवबहार एक बेटे को जन्म देगी। लेकिन वो 18 साल तक ही जी सकेगा। अगर बेटे को 18 की उम्र के बाद भी सलामत रखना है तो रानी नवबहार को एक काम करना होगा। उसके महल की झील में एक मछली है जिसकी गर्दन पर एक हार बंधा है। रानी को वो हार हासिल करना होगा। लेकिन दिक्कत ये है कि हार वाली मछली केवल एक ही दफा दिखेगी।
इसी बीच राजा की दूसरी पत्नी दिलबाहर का सेनापति आदिल से अफेयर हो जाता है। लेकिन जब राजा आदिल और दिलबहार को रंगे हाथों पकड़ लेता है तो दिलबहार खुद को निर्दोष कहते हुए आदिल पर उसे भड़काने का इल्ज़ाम लगा देती है। आदिल को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया जाता है। जबकी उसकी गर्भवती पत्नी को महल से बाहर निकाल दिया जाता है। महल से निकाले जाने के कुछ ही दिनों बाद सेनापति आदिल की पत्नी महर निग़ार एक बच्ची को जन्म देती है। इस बच्ची का नाम आलम आरा रखा जाता है। बच्ची के जन्म के कुछ वक्त बाद एक शिकारी महर निग़ार को उसके पति आदिल और रानी दिलबहार के अफेयर की बात बताता है। महर निग़ार को ये सुनकर बहुत झटका लगता है और वो सदमे में मर जाती है।
नन्ही आलम आरा को शिकारी गोद ले लेता है। उधर महल में दिलबहार को नवबाहर और उसके बेटे से जलन होने लगती है। दिलबहार को भी पता है कि अगर नवबहार को अपने बेटे क़मर को ज़िंदा रखना है तो उसे एक मछली से हार चाहिए। क़मर के 18वें जन्मदिन पर महल की झील में वो हार वाली मछली दिखाई दे जाती है। लेकिन उसे सबसे पहले दिलबहार देखती है। और वो मछली की गर्दन से वो हार निकाल लेती है। फिर नवबहार को वो एक नकली हार देकर कहती है कि यही हार उसे मछली की गर्दन से मिला है। असली हार दिलबहार खुद पहन लेती है। नतीजा ये होता है कि राजा और रानी नवबहार के इकलौते बेटे क़मर की मौत हो जाती है।
रानी नवबहार अपने बेटे क़मर की लाश को दफनाने से इन्कार कर देती है। हुक्म दिया जाता है कि उस फक़ीर को तलाशा जाए जिसने वो भविष्यवाणी की थी। रानी नवबहार जानना चाहती है कि सबकुछ उसके बताए मुताबिक करने के बावजूद आखिर कहां चूक हुई जो उसका बेटा मर गया। चूंकि क़मर का अंतिम संस्कार नहीं हुआ है तो जैसे ही रात के वक्त रानी दिलबहार अपने गले से वो हार उतारती है, क़मर ज़िंदा हो जाता है। और सुबह जब दिलबहार हार पहनती है तो क़मर फिर मर जाता है। ये सिलसिला कई दिनों तक चलता है।
दूसरी तरफ आलम आरा को पता चलता है कि उसके पिता आदिल ज़िंदा हैं और महल की जेल में बंद हैं। उसे ये भी पता चलता है कि उसके पिता को रानी दिलबहार ने फंसाया था। आलम आरा अपने पिता को कैद से आज़ाद कराने की कसम खाती है। फिर एक रात आलम आरा महल में आती है। वो वहां क़मर को देख लेती है जो उस रात फिर से ज़िंदा होता है। आलम आरा और क़मर एक-दूजे से प्यार कर बैठते हैं। वो ही पहली नज़र का पहला प्यार टाइप। बाद में कुछ ऐसा घटनाक्रम होता है कि रानी दिलबहार की साज़िशों का पर्दाफाश हो जाता है। उससे वो हार छीन लिया जाता है। अंत में क़मर फिर से ज़िंदा हो जाता है और आलम आरा के पिता आदिल को भी जेल से रिहा कर दिया जाता है। और अंत में आलम आरा और क़मर की भी शादी हो जाती है।
तो साहब, ये थी आलम आरा की कहानी जो वीकिपीडिया व कुछ अन्य स्रोतों से मुझे पता चली। आलम आरा एक एतिहासिक फिल्म है। और इस फिल्म के बारे मे बताने के लिए और भी कुछ बातें हैं। ये बातें जानने लायक भी हैं। यानि रोचक हैं। तो आज आलम आरा के बारे में आपको और भी कुछ पोस्ट्स किस्सा टीवी पर पढ़ने को मिल सकती हैं। ये कहानी पसंद आई हो तो इसे लाइक-शेयर अवश्य कीजिएगा।
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