प्रभु मेरे मन को बना दे शिवाला…...शिव शंकर को जिसने पूजा उसका बेड़ा पार हुआ… जैसे भजन और गीत अब नहीं गूंजते …क्योंकि अब बॉलीवुड ऐसे भजन या गीत फिल्माता ही नहीं है। गुलशन कुमार जब तक जिये बॉलीवुड में भारतीय सनातन धर्म हिन्दू संस्कृति के रक्षक के तौर पर उसका झण्डा उठाये रहे। शायद यही बात उनके और वैदिक संस्कृति के दुश्मनों को रास नहीं आयी और बॉलीवुड में भगवा का झण्डाबरदार मार दिया गया। आज ही की तारीख में 20 साल पहले (12 August 1997) वह काला दिन था जब हिन्दू संस्कृति के इस पहरुये को मौत के घाट उतार दिया गया। गुलशन, तुम क्या चले गये, जैसे बॉलीवुड पर हिन्दू विरोधी साये ने पूरी तरह अपने आगोश में लिया।
गुलशन आनन्द, तुम्हारे जाने के बाद अब फिल्मों में मौला-मौला…अल्लाह-अल्लाह की धूम ही शेष रह गयी। ऐसा नहीं है कि तुम्हारे समय में ऐसा नहीं था, तब भी कुली के अमिताभ बच्चन की जान 786 के बिल्ले से ही बची थी। ऐसे तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं जब बॉलीवुड का इस्लामीकरण के प्रयास पूरी या आंशिक रूप सफल रहे। कारण सब जानते हैं-डॉन दाउद इब्राहिम का पैसा। कहावत है जिसका खाओगे-उसका गाओगे। ऐसे में दाउद के इस्लामी एजेण्डे पर पूरा बॉलीवुड चलने लगा। बस, तुम्हीं तो थे जो तमाम मोहम्मद गोरियों के बीच पृथ्वीराज चौहान बन कर डटे थे।
अब तो शाहरुख खान जैसे लोग खुलकर पाकिस्तानी गायकों और नायकों को भारत में काम देने की वकालत करते हैं। ये पाकिस्तानी हमारे हिन्दुस्तान से कमाकर ले जाते हैं। टैक्स पाकिस्तान में देते हैं और इसी टैक्स से वह भारत में आतंक की फौज भेजता है। कश्मीर में पत्थर बाजों को पैसा बांटता है। तुम देख रहे हो न गुलशन, अब तो सावन के महीनें में भी तुम्हारे भजन कम सुनायी देते हैं। काश! तुम होते गुलशन।
शाह रुख खान ने खुले आम कहा कि पाकिस्तानी कलाकारों को भारत आने से कोई नहीं रोक सकता। कैसे हो गयी शाहरुख की इतनी हिम्मत? कारण ये कि उसकी फिल्मों के दर्शक खाड़ी के देशों और पकिस्तान में बहुत हैं। अब तो बॉलीवुड में हीरोइनें भी पाकिस्तानी होने लगीं। गायक और नायक तो थे ही।
गुलशन! मैं न तो इस्लाम का विरोधी हूं और न तुम थे। मैं तो सनातन भारतीय परम्परा के शांति के सिद्धान्त को मानने वाला हूं, तुम्हारी तरह। शिव के भजन गाओ और शिवत्व में मिल जाओ… पर चलने वाला। लेकिन राष्ट्र में हो रहे खतरनाक षडयंत्रों की गंध तुम जैसे लोगों को बेचैन कर देती है।
देश को खतरा है दाउद और कट्टर इस्लामी फाइनेन्सर्स के एजेण्डे पर बन रही फिल्मों पीके और ओह माई गॉड और उनके निर्देशकों से। क्यों कि ये फिल्में भारतीय संस्कृति की छवि को बिगाड़ने वाली हैं। पीके में भगवान शिव से रिक्शा चलवाना, मंदिर में गोलक के दृश्य हों या बाजीराव मस्तानी जैसी मराठा पृष्ठभूमि की फिल्म, सभी में इस्लाम प्रचार को ठूंस दिया गया।
गुलशन! लगता है कि अब बॉलीवुड के इस्लामी झण्डाबरदार एक नयी तरीके के जेहाद को बढ़ावा दे रहे हैं। मोहम्मद रफी, सुरैया, नौशाद, मजरूह सुल्तानपुरी, नर्गिस, मधुबाला, मीना कुमारी जैसे लोगों के योगदान के बिना बॉलीवुड की कल्पना भी नहीं की जा सकती। गुलशन! आज बॉलीवुड को, इस देश को तुम्हारी बहुत याद आ रही है। एक बार फिर आ जाओ, एक नये रूप में, नया जन्म लेकर ताकि बॉलीवुड में अल्लाह और मौला के साथ मंदिर घण्टी और ऊं नमः शिवाय… के स्वर सुनायी देने लगें। फिर मन शिवाला बन जाये और बॉलीवुड में षडयंत्रों की जगह शिवत्व की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त हो सके। …अंत में तुम जैसी दिव्य आत्मा को इस आत्मा का प्रणाम, नमन।
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