उस ज़माने में डीजे तो हुआ नहीं करते थे। इसलिए मुकेश जी को बारात का मनोरंजन करने के लिए कहा गया। इनसे कहा गया कि तुम बहुत गाते हो ना। चलो आज कुछ गाने गाओ। उस दिन मुकेश जी की बहन की शादी थी। ज़ाहिर है, वो इन्कार नहीं कर सकते थे। मुकेश जी ने गाना शुरू किया। और उन्होंने के.एल.सहगल साहब का एक गाना गाया। उस शादी में मुंबई(तब बॉम्बे) से भी दो लोग शिरकत करने आए थे। सारी रात गाना-बजाना होता रहा। अगली सुबह बारात विदा होने के बाद बॉम्बे से आए वो दोनों आदमी मुकेश जी के पिता से मिले। उन्होंने मुकेश जी के पिता से कहा कि आपका बेटा तो बहुत अच्छा गाता है। ये तो बहुत अच्छा गायक बन सकता है। अब मुकेश जी के पिता ठहरे सीधे-सादे आम इंसान। उन्हें समझ ही नहीं आया कि ये लोग कहना क्या चाह रहे हैं।
उन्होंने हैरत से उन दोनं आदमियों को देखा। फिर मुकेश जी से पूछा कि ये लोग कौन हैं और क्या चाहते हैं? मुकेश जी ने उन्हें बताया कि ये फिल्मी दुनिया के लोग हैं और बहुत मशहूर हैं। उन दोनों में से एक मुकेश जी के पिता से बोला,”आप इसे हमारे साथ फिल्मों में काम करने भेज दीजिए। ये सहगल से भी ज़्यादा नाम कमाएगा।” उस दौर में मुकेश जी के पिता ने सिर्फ सहगल साहब का ही नाम सुना था। बाकि उन्हें फिल्मी दुनिया के बारे में और कुछ नहीं पता था। उस समय मुकेश जी मैट्रिक की पढ़ाई कर रहे थे। उनके पिता ने उन दोनों आदमियों से कहा कि भई हम तो इसे कोई क्लर्क वगैरह की नौकरी में लगवा देंगे। ये फिल्म-विल्म हमारी समझ से बाहर की चीज़ है। काफी समझाने के बाद भी जब मुकेश जी के पिता नहीं माने तो वो दोनों आदमी वापस बॉम्बे लौट गए।
कुछ दिन बाद उनमें से एक ने मुकेश जी के घर एक तार भेजा। एक बार फिर से उनसे गुज़ारिश की गई थी कि वो मुकेश को बॉम्बे आने की इजाज़त दे दें। ये बहुत नाम कमा सकता है। मुकेश जी के पिता सोच में पड़ गए। आखिरकार उन्होंने मुकेश से कहा कि अगर वो लोग इतनी विनती कर रहे हैं तो शायद तुम्हारे अंदर कोई खूबी होगी। जाओ, आज़मा लो अपनी किस्मत। और इस तरह मुकेश जी बॉम्बे। और वो दो लोग, जिन्होंने मुकेश जी को बॉम्बे भेजने की सिफारिश इनके पिता से की थी, उनमें से एक थे उस दौर के स्टार एक्टर मोतीलाल। जो मुकेश जी के दूर के रिश्तेदार भी बताए जाते हैं। मोतीलाल जी ने मुकेश जी को एक फिल्म में बतौर एक्टर-सिंगर काम दिला दिया। उस फिल्म का नाम था निर्दोष जिसे नेशनल स्टूडियोज़ ने प्रोड्यूस किया था। मुकेश जी की हीरोइन थी खूबसूरत नलिनी जयवंत।
दुर्भाग्यवश मुकेश जी की वो पहली फिल्म फ्लॉप हो गई। नेशनल स्टूडियो पर भी ताला लग गया। नतीजा ये हुआ कि बॉम्बे में सर्वाइव करने के लिए मुकेश जी को कई तरह के काम करने पड़े। कभी वो शेयर ब्रोकर बने, कभी उन्होंने ड्राइ फ्रूट्स बेचे, तो कभी कुछ और काम किया। इस दौरान चंद और फिल्मों में मुकेश जी ने एक्टिंग व गायकी की थी। लेकिन वो फिल्में भी ना चल सकी थी। मुकेश जी को लगा कि फिल्मों में उन्हें सफलता नहीं मिल सकेगी। लेकिन तभी फिल्मी दुनिया में एक क्रांति हो गई। एक ऐसी क्रांति जिसने मुकेश जी सहित कई और कलाकारों की ज़िंदगी बदल दी। मुकेश जी जब फिल्मी दुनिया में आए थे तब तक भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में प्लेबैक सिंगिंग का चलन नहीं था।
जो भी एक्टर फिल्मों में काम करते थे उन्हें अपने गीत खुद गाने पड़ते थे। कुछ मौके आए थे जब प्लेबैक सिंगिंग की गई थी। लेकिन 1943 में कलकत्ता में पहली दफा भारत में प्रोफेशनल प्लेपबैक सिंगिंग स्टार्ट हुई थी। उसके बाद बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री में भी प्लेबैक सिंगिंग का चलन शुरू हो गया। और मोतीलाल जी की मदद से मुकेश जी को फिल्म पहली नज़र में बतौर गायक अपना पहला गीत रिकॉर्ड करने का मौका मिला।हालांकि एक वक्त पर प्रोड्यूसर मुकेश जी के उस पहले गीत को फिल्म से हटाना चाहता था। लेकिन किसी तरह गीत को फिल्म में जगह मिली और वो दर्शकों तक पहुंचा तो मुकेश जी के लोग दीवाने हो गए। सभी ने कहा कि इंडस्ट्री में दूसरा के.एल.सहगल आ गया है। उस गीत का किस्सा भी आज ही किस्सा टीवी पर पोस्ट किया जा चुका है। ना पढ़ा हो तो पढ़िएगा। वो भी रोचक है।
पहले ही गीत ने मुकेश जी को बतौर प्लेबैक सिंगर सफलता दिला दी। जबकी बतौर एक्टर-सिंगर वो नाकामयाब रहे थे और फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने का विचार करने लगे थे। मुकेश जी जब मशहूर हो गए तो किसी ने एक दिन उनसे पूछा कि मुकेश जी, क्या आपके मन में कभी हीरो बनने का ख्याल नहीं आया? मुकेश जी ने जवाब देते हुए कहा कि मैंने तो शुरुआत ही हीरो के तौर पर की थी। लेकिन मैं फेल हो गया। फिर मैंने सोचा कि एक सेकेंड क्लास एक्टर बनने से अच्छा है कि मैं एक फर्स्ट क्लास सिंगर बन जाऊं।
मुकेश जी 20 जुलाई 1923 को दिल्ली में मुकेश जी पैदा हुए थे। इनका पूरा नाम था मुकेश चंद माथुर। मुकेश जी के पिता का नाम था ज़ोरावर चंद माथुर। और इनकी माता का नाम था चंद्राणी माथुर। 10 भाई-बहनों में मुकेश जी छठे नंबर पर थे। मुकेश जी की बहन को संगीत सिखाने के लिए एक संगीत टीचर इनके घर आया करते थे। उन्हें देखकर ही मुकेश जी को गाने का शौक हुआ था। मुकेश जी ने सरल त्रिवेदी जी से शादी की थी। और इनकी शादी इतने नाटकीय अंदाज़ में हुई थी कि उस पर एक छोटी सी फिल्म बनाई जा सकती है।