मुक्काबाज : उभरते खिलाड़ियों के संघर्ष को पेश करती एक फिल्म

 ’मुक्काबाज’ : क्रिकेट के दीवाने इस देश में लोग अब अन्य खेलों पर बनी फिल्मों को भी खासा पसंद करते हैं। चाहे हॉकी पर बनी ’चक दे इंडिया’ हो या फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह पर बनी ’भाग मिल्खा भाग’ और प्रियंका चोपड़ा अभिनीत ’मैरीकॉम’ और कुश्ती पर बनी ’सुल्तान’ और ’दंगल’ ने कमाई और शोहरत के झण्डे गाड़े हैं।

अब इसी क्रम में अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित फिल्म ’मुक्काबाज’ भी जुड़ गयी है। यह एक ऐसी फिल्म है जो आपको कुछ सोचने पर मजबूर करती है। इसकी कहानी खुद फिल्म के लीड हीरो विनीत कुमार सिंह ने करीब चार साल पहले लिखी। कई प्रडयूसर से इस पर फिल्म बनाने के लिए अप्रोच किया, लेकिन वह खुद फिल्म में लीड किरदार निभाने की शर्त पर अपनी कहानी पर फिल्म बनाने की बात कर रहे थे।

पहले मुक्केबाजों के साथ रिंग में उतरो…फिर रोल करो

अनुराग ने जब विनीत और मुक्ति सिंह की लिखी कहानी पर फिल्म बनाने के लिए हामी भरी तभी विनीत को साफ कह दिया पहले आप रिंग में जाकर मुक्केबाजी में परफेक्ट हो जाओ, प्रोफेशनल मुक्केबाजों के साथ रिंग में उतरकर मुक्केबाजी करो… उसके बाद ही फिल्म में लीड किरदार कर पाओगे।

पहली बार अनुराग ने इस फिल्म में कई बॉक्सिंग टूर्नामेंट खेल चुके मुक्केबाजों को लिया। फिल्म में विनीत जहां इनके साथ रिंग में भिड़ते नज़र आ रहे हैं वहीं इन सबसे विनीत ने शूटिंग से पहले ट्रेनिंग ली। फिल्म के क्लाइमैक्स में विनीत भारत के पूर्व बॉक्सिंग चैंपियन रह चुके दीपक राजपूत से भिड़ते हैं तो वहीं टेक्निकल राउंड में वह, नीरज गोयत से जैसे नामी मुक्केबाजों के साथ भिड़ते नज़र आते हैं। इतना हीं नहीं अनुराग ने फिल्म को रिऐलिटी के और नजदीक रखने के मकसद से बॉक्सिंग के सीन की शूटिंग के लिए किसी कोरियॉग्रफर या ऐक्शन एक्सपर्ट की मदद नहीं ली और बॉक्सिंग मुकाबलों के सीन में विनीत रिंग के नामचीन मुक्केबाजों के साथ भिड़े जिसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। शूटिंग के दौरान विनीत कई बार चोटग्रस्त हुए जिसके चलते फिल्म की शूटिंग रोकनी पड़ी।

बरेली की गलियों में हुई शूटिंग

बरेली की छोटी गलियों में अपने बड़े भाई के साथ रह रहे श्रवण सिंह (विनीत कुमार सिंह) का बस एक ही सपना है कि उसने मुक्केबाजी में अपना नाम कमाना है। गरीब तंग हाल फैमिली का श्रवण मुक्केबाजी की ट्रेनिंग लेने के मकसद से फेडरेशन में प्रभावशाली और दबंग भगवानदास मिश्रा ( जिम्मी शेरगिल) के यहां जाता है, जहां भगवान दास बॉक्सर उसे बॉक्सिग की ट्रेनिंग देने की बजाए अपने घर के कामकाज में लगा देता है। श्रवण को यह मंजूर नहीं और एक दिन वह जब भगवान दास के चेहरे पर मुक्का जड़ देता है तो इसके बाद भगवान दास उसका करियर तबाह करने का मन बनाकर उसके रास्ते में रोड़े अटकाने में लग जाता है। वहीं भगवान दास की भतीजी सुनैना (जोया हुसैन) है, जो सुन तो सकती है लेकिन बोल नहीं सकती।

पहली नजर में देखते ही श्रवण उस पर मर मिटता है। भगवान दास के होते जब श्रवण बरेली की ओर से टूर्नामेंट में हर बार खेलने से रोक दिया जाता है तो वह बनारस का रुख करता है, जहां कोच (रवि किशन) उसके टैलंट को पहचानता है। कोच को लगता है कि अगर मेहनत की जाए तो श्रवण नैशनल चैंपियन बन सकता है। जिला टूर्नामेंट जीतने के बाद श्रवण को रेलवे में नौकरी मिल जाती है। भगवान दास की मर्जी के खिलाफ श्रवण और सुनैना की शादी हो जाती है, लेकिन भगवान दास को यह मंजूर नहीं, इसलिए नैशनल चैंपियनशिप के मुकाबले से श्रवण को बाहर करने के लिए भगवान दास एक साजिश रचता है।

विनीत कुमार सिंह का जवाब नहीं

मुक्केबाज श्रवण के किरदार में विनीत कुमार सिंह का जवाब नहीं। बॉक्सिंग रिंग में नामी मुक्केबाजों के साथ विनीत के फाइट्स सीन फिल्मी न होकर रिऐलिटी के बेहद करीब लगते हैं। विनीत की डायलॉग डिलीवरी किरदार के अनुरूप है तो वहीं अपनी हर बात को इशारों में रखने वाली सुनैना के रोल में जोया हुसैन ने मेहनत की है। जिम्मी शेरगिल की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने भगवान दास मिश्रा के किरदार को ऐसे घिनौने और खतरनाक अंदाज के साथ पेश किया कि दर्शकों को इस किरदार से नफरत हो जाती है और इसका क्रेडिट यकीनन जिम्मी की बेहतरीन ऐक्टिंग को जाता है। वहीं कोच के रोल में रवि किशन अपने किरदार में खूब जमे हैं। रेफरी की भूमिका बरेली के कलाकार अंकुर राणा ने निभाई है । इसके अलावा भी बरेली के अनेक कलाकारों ने छोटी-चोटी भूमिकाएं निभायी हैं ।

उभरते खिलाड़ियों के संघर्ष को पेश करने में कामयाब रहे अनुराग

अपने मिजाज के मुताबिक, अनुराग कश्यप फिल्म में गुंडाराज व जातिवाद पर उभरते खिलाड़ियों के संघर्ष को भी पेश करने में कामयाब रहे हैं। बेशक अनुराग की इस फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर की है, लेकिन कहानी पेश करने का अंदाज उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि हर उस राज्य का है जहां अभी भी बॉक्सिंग की पहचान है। फिल्म के संवाद बेहतरीन हैं। फिल्म के संवादों में उत्तर प्रदेश की बोली की महक आती है। फिल्म के लीड किरदार श्रवण सिंह का यह डायलॉग ’माइक टायसन हैं हम उत्तर प्रदेस के’, ’एक ठो धर दिए न तो प्राण पखेरू हो जाएगा आपका’ दर्शकों को तालिया बजाने को मजबूर करता है। रचिता सिंह का संगीत टोटली फिल्म के मिजाज के मुताबिक है, वहीं फिल्म का माइनस पॉइंट फिल्म की सुस्त रफ्तार के साथ बेवजह कहानी को खींचना है। इंटरवल से पहले कई सीन लंबे किए गए। अगर अनुराग 15-20 मिनट की फिल्म पर कैंची चलाते तो फिल्म की रफ्तार दर्शकों को कहानी के साथ पूरी तरह बांधकर रखती। साभार -नभाटा

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