महान वैज्ञानिक एस. नांबी नारायणन को उस गुनाह के लिए सजा और जिल्लत झेलनी पड़ी, जो कभी हुआ ही नहीं। केरल पुलिस ने उन्हें रॉकेट के क्रायोजेनिक इंजन की परियोजना से जुड़े दस्तावेजों की चोरी कर मालदीव के रास्ते पाकिस्तान भेजने के आरोप में गिरफ्तार किया जबकि सच्चाई यह थी कि यह तकनीक उस समय मौजूद ही नहीं थी।
तिरुवनंतपुरम। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO ) के पूर्व वैज्ञानिक एस. नांबी नारायणन की यह दास्तां भारतीय पुलिस के उस स्याह चेहरे की तस्दीक करती है जो “रस्सी को भी सांप बना देती है।” केरल पुलिस की मनमानी के चलते भारत के इस बड़े अंतरिक्ष वैज्ञानिक को न केवल जिंदगी के कई अनमोल दिन (करीब 2 महीने) काल कोठरी में बिताने पड़े बल्कि नौकरी और प्रतिष्ठा भी गंवानी पड़ी। केरल सरकार ने मंगलवार को इसरो के इस पूर्व वैज्ञानिक को ढाई दशक पुराने जासूसी मामले के निपटारे के लिए 1.30 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दिया। पिछले साल दिसंबर में ही केरल राज्य कैबिनेट ने एस. नांबी नारायणन को 1.30 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की मंजूरी दे दी थी।
नांबी नारायणन को उस गुनाह के लिए सजा और जिल्लत झेलनी पड़ी, जो कभी हुआ ही नहीं। केरल पुलिस ने उन्हें रॉकेट के क्रायोजेनिक इंजन की परियोजना से जुड़े दस्तावेजों की चोरी कर मालदीव के रास्ते पाकिस्तान भेजने के आरोप में गिरफ्तार किया जबकि सच्चाई यह थी कि ऐसी कोई तकनीक उस समय मौजूद ही नहीं थी।
नांबी नारायणन (79) द्वारा तिरुवनंतपुरम के सत्र न्यायालय में वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मामला दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस मामले में उनकी गिरफ्तारी “अनावश्यक” थी और उन्हें फंसाया गया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 50 लाख रुपये की अंतरिम राहत देने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि नांबी नारायणन इससे ज्यादा के हकदार हैं और वे उचित मुआवजे के लिए निचली अदालत का रुख कर सकते हैं। इससे पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी उन्हें 10 लाख रुपये की राहत देने का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केरल सरकार ने पूर्व मुख्य सचिव के. जयकुमार को इस मामले को देखने और एक सटीक मुआवजा राशि तय करने और मामले का निपटारा करने को कहा था। बाद में अदालत के समक्ष उनके सुझाव प्रस्तुत किए गए और एक समझौता किया गया।
केरल सरकार द्वारा दी गई मुआवजे की राशि का चेक स्वीकार करते हुए नांबी नारायणन ने कहा, “मैं खुश हूं। यह केवल मेरे द्वारा लड़ी गई लड़ाई धन के लिए नहीं है। मेरी लड़ाई अन्याय के खिलाफ थी।”
इसरो जासूसी मामला दो वैज्ञानिकों और दो मालदीवियन महिलाओं सहित चार अन्य लोगों द्वारा दुश्मन देशों को काउंटी के क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी के कुछ गोपनीय दस्तावेजों और सीक्रेट के हस्तांतरण के आरोपों से संबंधित है। नांबी नारायणन के खिलाफ वर्ष 1994 में दो कथित मालदीव के महिला खुफिया अधिकारियों को रक्षा विभाग से जुड़ी गुप्त जानकारी लीक करने का आरोप लगा था। उनको इस मामले में गिरफ्तार भी किया था।
सु्प्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि नांबी नारायणन को काफी यातनाएं दी गईं। इतना ही नहीं, सालों तक जब तक इन्हें न्याय नहीं मिला और बेकसूर साबित नहीं हुए, तब तक इन्हें देश का गद्दार तक कहा गया। यह मामला उस वक्त काफी गरमाया हुआ था। इस मामले पर अब तक कई किताबें भी लिखी जा चुकी हैं। अभिनेता-निर्देशक आर. माधवन ने नारायणन पर एक बायोपिक भी बनाई जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री के. करुणाकरण के साथ इन आरोपों के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। नांबी नारायणन को पिछले साल पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये घटना इस बात को साबित करती है कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं।
नांबी नारायणन के मुताबिक, उनके सहयोगी और दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने आरोप मुक्त होने के बाद मुकदमे से बचने की सलाह दी थी। लेकिन वह गुनाहगारों को सजा दिलाने और मुआवजा पाने के फैसले पर अडिग थे। कहा जाता है कि यह प्रकरण राजनीतिक खींचतान का नतीजा था। इस मुद्दे पर कांग्रेस के एक वर्ग ने तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करुणाकरण को निशाना बनाया। इस वजह से उन्हें बाद में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
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