मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी। दरअसल, पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह दलील साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों का खतना 10वीं सदी से होता आ रहा है इसलिए यह आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है जिस पर अदालत द्वारा पड़ताल नहीं की जा सकती। कोर्ट ने यह बात एक मुस्लिम समूह की ओर से पेश हुए वकील एएम सिंघवी की दलीलों का जवाब देते हुए कही थी। सिंघवी ने अपनी दलील में कहा था कि यह एक पुरानी प्रथा है जो कि जरूरी धार्मिक प्रथा का हिस्सा है और इसलिए इसकी न्यायिक पड़ताल नहीं हो सकती।
सिंघवी ने कोर्ट से कहा था कि यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 25और 26 के तहत संरक्षित है जो कि धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित है। कोर्ट ने इससे असहमति जतायी और कहा था कि यह तथ्य पर्याप्त नहीं कि यह प्रथा 10वीं सदी से प्रचलित है.इसलिए यह धार्मिक प्रथा का आवश्यक हिस्सा है। कोर्ट ने कहा था कि इस प्रथा को संवैधानिक नैतिकता की कसौटी से गुजरना होगा।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग लड़कियों का खतना परंपरा संविधान के अनुच्छेद-21 और अनुच्छेद-15 का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा था कि यह प्रक्रिया जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता, धर्म, नस्ल, जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव करता है.कोर्ट ने कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है क्योंकि इसमें बच्ची का खतना कर उसको आघात पहुंचाया जाता है। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि सरकार याचिकाकर्ता की दलील का समर्थन करती है कि यह भारतीय दंड संहिता (IPC) और बाल यौन अपराध सुरक्षा कानून (पोक्सो एक्ट) के तहत दंडनीय अपराध है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिला सिर्फ पति की पसंदीदा बनने के लिए ऐसा क्यों करे? क्या वो पालतू भेड़ बकरियां है? उसकी भी अपनी पहचान है। कोर्ट ने कहा था कि ये व्यवस्था भले ही धार्मिक हो, लेकिन पहली नज़र में महिलाओं की गरिमा के खिलाफ नज़र आती है। कोर्ट ने ये भी कहा था कि सवाल ये है कि कोई भी महिला के जननांग को क्यों छुए? वैसे भी धार्मिक नियमों के पालन का अधिकार इस सीमा से बंधा है कि नियम ’सामाजिक नैतिकता’ और ’व्यक्तिगत स्वास्थ्य’ को नुकसान पहुंचाने वाला न हो। याचिकाकर्ता सुनीता तिवारी ने कहा था कि बोहरा मुस्लिम समुदाय इस व्यवस्था को धार्मिक नियम कहता है। समुदाय का मानना है कि 7 साल की लड़की का खतना कर दिया जाना चाहिए। इससे वो शुद्ध हो जाती है। ऐसी औरतें पति की भी पसंदीदा होती हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि खतना की प्रक्रिया को अप्रशिक्षित लोग अंजाम देते हैं। कई मामलों में बच्ची का इतना ज्यादा खून बह जाता है कि वो गंभीर स्थिति में पहुंच जाती है।
केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका का समर्थन करते हुए कहा था कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है और वह इस पर रोक का समर्थन करता है। इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि इसके लिए दंड विधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है। आपको बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इस्लामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिवारी ने याचिका दायर कर इस प्रथा पर रोक लगाने की मांग की है।
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