हाथी-घोड़ों के प्रवेश को लेकर मेला प्रशासन और संतों के बीच सहमति बन गई है। 1954 के कुंभ मेले में हाथी भड़कने के बाद हुई भगदड़ के बाद से हाथियों का प्रवेश प्रतिबंधित है।
प्रयागराज। कुंभ मेले में पेशवाई और शाही स्नान के दौरान हाथी-घोड़ों के प्रवेश को लेकर मेला प्रशासन और संतों के बीच सहमति बन गई है। शनिवार को पुलिस अधिकारियों ने परंपरा का पालन करने की बात कही तो अखाड़े राजी हो गए। तय हुआ कि सुरक्षा के लिहाज से पेशवाई के दौरान हाथी-घोड़े पांटून पुल के ऊपर नहीं चलेंगे। उधर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि परंपरा के अनुसार पेशवाई में हाथी-घोड़े शामिल होंगे क्योंकि पुलिस अधिकारियों ने परंपरा का निवर्हन कराने की बात कही है।
दो दिन हुई बैठक
मेला प्रशासन औरअखाड़ों की बैठक शुक्रवार को कुंभ पुलिस कार्यालय में बैठक हुई। पुलिस अधिकारियोंने नियम का हवाला देते हुए पेशवाई में हाथी-घोड़े नहीं लानेकी बात कही। इस पर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष समेत अन्य संत नाराज हो गए। परंपरा औरनिर्देश को लेकर टकराव हुआ तो कुछ संत बैठक छोड़कर बाहर निकल गए। संतों का रुख देखअधिकारी बैकफुट पर आ गए और फिर उन्हें मनाया। शनिवार को भी पुलिस अधिकारी इस मसलेपर मंथन करते रहे और फिर परंपरा का निर्वहन करने की बात कही। अखाड़े के पदाधिकारीभी परेड में त्रिवेणी मार्ग तक ही हाथी और घोड़े ले जाने पर राजी हो गए। यहीव्यवस्था 2001के कुंभ मे भीथी।
डीआइजी कुंभ मेला केपी सिंह के मुताबिक पांटून पुल पर हाथी-घोड़े नहीं चलेंगे। अखाड़ों की परंपरा का पालन किया जाएगा। पेशवाई मार्ग पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रहेंगे। Pashwai
गौरतलब है कि मेला क्षेत्र का विस्तार होने के कारण इस बार अखाड़ों को गंगा के उस पार बसाया गया है।
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