वाशिंगटन। वायु प्रदूषण न केवल सड़कों और औद्योगिक क्षेत्रों में है बल्कि हमारे घर-कार्यालयों में भी कुंडली मारकर बैठा हुआ है और धीमे जहर की तरह लोगों के स्वास्थ्य का नाश कर उन्हें मौत की तरफ ढकेल रहा है। जाहिर है कि प्रदूषण चाहे बाहरी हो या भीतरी (Outer or inner) दोनों ही स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। कमरे के भीतर होने वाले प्रदूषण के कारकों की पहचान करने के लिए किए गए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि इसका एक कारण कार्यालयों और घरों का खराब वेंटिलेशन सिस्टम और वहां काम करने वाले कर्मचारी/रहवासी भी होते हैं जो कमरे के भीतर की हवा को प्रभावित करते हैं।
अमेरिकी की पर्डयू विश्वविद्यालय के इंजीनियरों की एक टीम ने विशेष प्रकार के सेंसरों की मदद सेकार्यालयों के भीतर की हवा की गुणवत्ता की जांच कर यह दावा किया है। इसे अपनी तरह का सबसे बड़ा अध्ययन बताया जा रहा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस शोध का लक्ष्य भीतरी वायु प्रदूषण के कारकों की पहचान करना और उन्हें नियंत्रित करने के तरीकों की सिफारिश करना है ताकि ऐसी इमारतों को बनाया जा सके जो लोगों के स्वास्थ्य के अनुकूल हों।
सिविल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर ब्रैंडन बूर ने कहा, “अगर हम कार्यालय के भीतर की हवा की गुणवत्ता में सुधार करते हैं तो हम अपनी उत्पादकता को भी बढ़ा सकते हैं। लेकिन, इसके लिए हमें पहले यह समझने की जरूरत है कि हवा में प्रदूषण फैलाने वाले कारक कौन-कौन से हैं और इन्हें कैसे हवा से अलग किया जा सकता है?”
शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि कार्यालयों के अंदर की हवा को किसी अन्य कारकों के मुकाबले वहां काम करने वाले लोग और उसका खराब वेंटिलेशन सिस्टम ज्यादा प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के शुरुआती निष्कर्षों को ओरेगन के पोर्टलैंड में आयोजित अमेरिकन एसोसिएशन फॉर एरोसोल रिसर्च कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया है।
बूर ने कहा, “कमरे के भीतर की हवा की स्थिति परिवर्तनशील होती है। यह पूरे दिन बाहरी परिस्थितियों के आधार पर बदलती रहती है। …यह भी महत्वपूर्ण है कि कमरे का वेंटिलेशन सिस्टम कैसे संचालित होता है और कार्यालय में काम करने वाले लोगों की संख्या कितनी है क्योंकि कमरे में जितने ज्यादा लोग होंगे हवा उतनी ही ज्यादा प्रदूषित होगी।“
बूर ने आरजे ली ग्रुप के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर कई स्थान पर अति संवेदनशील “नोज” लगाए। इस उपकरण को वैज्ञानिक को स्पेक्ट्रोमीटर कहते हैं। इसकी मदद से आमतौर पर बाहरी हवा की गुणवत्ता की जांच की जाती है। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि लोगों के बाहर निकलने के बाद भी कमरे में आइसोप्रीन और कई अन्य यौगिक वातावरण में घूमते रहते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकार होते हैं। उन्होंने कहा कि जिस कमरे में जितने अधिक लोग होंगे, उसमें आइसोप्रीन का उत्सर्जन उतना ही ज्यादा होगा।
कार्यालयों की तरह हमारे घर भी प्रदूषित हो सकते हैं। हवा के आवागमन (Cross ventilation) की उचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से घरों के अंदर की हवा साफ नहीं हो पाती है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। घरों में भी हवा के प्रदूषित होने का सबसे ज्यादा खतरा रसोईघर में होता है। हालांकि घरों में होने वाले प्रदूषण से बचाव बेहद आसान है। कमरों में पर्याप्त खिड़की, दरवाजे और रोशनदार इस खतरे को हम करते हैं। साथ ही विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि दरवाजों-खिड़कियों को दिन में कम से काम एक बार खासकर प्रातःकाल पूरी तरह जरूर खोलें जिससे बासी/प्रदूषित हवा को बाहर ठेलकर ताजी हवा घर में अपनी जगह बना सके।
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