नई दिल्‍ली। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता पैनल को समझौते का जो लिखित प्रस्ताव दिया है उसमें बताई गई शर्तों और राय को हिंदू महासभा ने आधारहीन बताते गुए सिरे से खारिज कर दिया है।

दरअसल, मध्यस्थता पैनल ने सुप्रीम कोर्ट में सौंपी रिपोर्ट में कहा है कि मुस्लिम पक्ष उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर हक छोड़ने को तैयार है और इसके लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं। इसके तहत सभी पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए 1991 के अधिनियम के प्रावधान को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।

वक्फ बोर्ड भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित मस्जिदों की चुनिंदा सूची जमा कर सकता है और अदालत द्वारा नियुक्त समिति पूजा-अर्चना के लिए इसे अंतिम रूप देगी। वक्फ बोर्ड को सरकार द्वारा विवादित स्थल के अधिग्रहण पर कोई आपत्ति नहीं है पर वह चाहता है कि अयोध्या में मौजूदा मस्जिदों को सरकार द्वारा पुनर्निर्मित किया जाए। वक्फ बोर्ड किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर मस्जिद का निर्माण कर सकता है। राम मंदिर स्थल पर योजना के लिए हिंदू पक्ष सुझाव दे सकते हैं। अयोध्या में समुदायों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना हो सकती है। महंत धर्मदास और श्री अरबिंदो आश्रम, पांडिचेरी ऐसी संस्था के लिए अयोध्या में अपनी भूमि की पेशकश करने के लिए आगे आए हैं। समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले मुख्य दलों/पक्षों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्वाणी अखाड़ा, राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति, द्वारका के शंकराचार्य और हिंदू महासभा के प्रतिनिधि शामिल हैं। हालांकि इसमें अन्य मुस्लिम पक्षकार तथा राम जन्मभूमि न्यास, रामलला विराजमान आदि शामिल नहीं हैं।

इस बीच, हिंदू महासभा ने सुन्नी वक्फ बोर्ड की मध्‍यस्‍थता की राय को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार और पुरातत्व विभाग पक्षकार नहीं हैं। ऐसे में सुन्नी वक्फ बोर्ड की पुरातत्व विभाग और केंद्र सरकार से कोई मांग रखना किसी भी तरह से वाजिब नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित हो चुका है, ऐसे में सुनवाई पूरी होने के बाद मध्‍यस्‍थता पैनल की किसी बात के कोई मायने नहीं रह जाते हैं। इसके अलावा मधस्‍थता में हर पक्ष की पूर्ण रजामंदी ज़रूरी है जो कि इस मामले में नहीं है। इसलिए भी मध्‍यस्‍थता पैनल की बात के कोई मायने नहीं हैं।

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