इस चंद्रग्रहण को भारत समेत समूचे एशिया, यूरोप और अफ्रीका में देखा जा सकेगा। देश के शीर्ष खगोल विज्ञान संगठन, स्पेस इंडिया के मुताबिक सोमवार की रात 11.51 बजे ग्रहण अपने सर्वोच्च प्रभाव में रहेगा।
विज्ञान के अनुसार चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते हैं जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रतिच्छाया में आ जाता है। ऐसे में सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा लगभग एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण हमेशा साथ-साथ होते हैं तथा सूर्यग्रहण से दो सप्ताह पहले चंद्रग्रहण होता है।
ग्रहण के वक्त वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दौरान अल्ट्रावॉयलेट किरणें निकलती हैं जो एंजाइम सिस्टम को प्रभावित करती हैं, इसलिए ग्रहण के दौरान सावधानी बरतने की जरूरत होती है। इसीलिए यह समय को अशुभ माना जाता है। इस समय चंद्रमा, पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है, जिससे गुरुत्वाकर्षण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। इसी कारण समुद्र में ज्वार भाटा आते हैं और भूकंप भी गुरुत्वाकर्षण के घटने और बढ़ने के कारण ही आते हैं।
ज्योतिष के अनुसार राहु, केतु को अनिष्टकारण ग्रह माना गया है। चंद्रग्रहण के समय राहु और केतु की छाया सूर्य और चंद्रमा पर पड़ती है। इस कारण सृष्टि इस दौरान अपवित्र और दूषित को हो जाती है।
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